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पन्द्रहवा अध्याय नवीन जल पाता रहता हो उसमें से पुराने जाल को उलीचने पर भी तालाव खाली नहीं हो सकता। और कल्पना कीजिए, नवीन जल का श्रागमन रोक दिया गया, पर पुराना जल न सूखा, तब भी तालाब सर्वथा निर्जल न होगा। इसी प्रकार जवतक शास्त्रव का प्रवाह चालू रहता है तव तक श्रात्मा सर्वथा निष्कर्म नहीं हो सकता और जब तक पूर्व संचित कर्मों को तप के द्वारा भस्म न किया जाए तब तक भी फर्महीन अंवस्था उत्पन्न नहीं हो सकती। श्रतएव कर्मों का सर्वथा क्षय करने के लिए संवर और निर्जरा-दोनों ही अपेक्षित हैं। इन दोनों का परम प्रकर्ष होने पर मोक्ष निष्कर्म दशा की प्राप्ति होती है।
तप निर्जरा का साधन है। जैसे इंधन अग्नि के द्वारा भस्म कर दिया जाता है, उसी प्रकार कर्मों का ध्वंस करने के लिए सप अनि के समान है। करोड़ों भवों में संचित कर्म तपस्या के द्वारा नष्ट हो जाते हैं। यही कारण है कि श्रमणोत्तम भगवान् . महावीर ने तप का स्वयं श्रादर किया और उसकी महिमा प्रकट की है। शास्त्र में -
धुणिया कुालय व लेववं, किसए देहभणसणाइहि । अविहिंसामेव पव्वप, अणुधम्मो मुणिणा पवेहो। सउणी जह पंसुगुंडिया, विहुणिय घंसपई सियं रयं । एवं दवि ओवहाण, कम्मं खबइ तवस्ति माहणे ॥
-सुयगडांग, अ० २-उ० १, गा० १५-१५ अर्थात्-जैसे लेप वाली दीवाल, लेप हटा कर कृश बना दी जाती है इसी प्रकार अनशन आदि तप के द्वारा शरीर को कृश कर डालना चाहिए और अहिंसा धर्म का पालन करना चाहिए । ज्ञात मुनि ने ऐसा उपदेश दिया है।
जैसे पक्षिणी अपने शरीर में लगी हुई धूल, शरीर को हिलाकर मार देती है, इसी तरह अनशन आदि तप करने वाला पुरुष कर्मों का क्षय कर देता है।
___ यहां पर तप की महत्ता बतलाने के साथ हिंसा श्रादि रूप प्रास्त्रव के त्याग फरने का भी विधान किया गया है। . शंका-यदि तपस्या से कसौ का क्षय होता है तो अक्षान पूर्वक तप करने भाले बाल-तपस्वियों के कर्मों का भी लय होना चाहिए । यया तप के द्वारा वे भी निष्कर्म अवस्था प्रास करते हैं ?
समाधान- अचान पूर्वक किया जाने वाला तप कर्मतय का कारण नहीं होता। . ऐसा तप संसार-वृद्धि का ही कारण होता है। कहा भी है:
जे य बुद्धा महाभागा, वीरा सस्मचदसिणो। ___ सुद्ध तेर्सि परक्तं, अफलं होइ सनसो॥ .
अर्थात्-जो सभ्यग्ज्ञानी, महाभाग, वीर एवं सम्यग्दृष्टि हैं उन्हीं का तप शादि 'मनुष्ठान शुद्ध है और उसीसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। उन महापुरुषों का तप सांसा