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पन्द्रहवां अध्याय
[५८७ } . बारह प्रतिमाओं का संक्षिप्त स्वरूप इस प्रकार है:-पहली प्रतिमा में, एक महीने तक एक दत्ति आहार और एक दत्ति पानी की लेना । आहार लेते समय एक साथ एक बार में जितना आहार मिल उतना ही लेना, दूसरी बार न लेना एक दत्ति श्राहार कहलाता है। इसी प्रकार घारा टूट बिना एक साथ जितना पानी मिले उतना. ही लेना, धारा टूटने पर फिर न लेना पानी की एक दत्ति कहलाती है।
इसी प्रकार दूसरी प्रतिमा में दो मास तक दो-दो दत्ति (दांत ) आहार-पानी की लेना, तालरी प्रतिमा में तीन मास तक तीन-तीन और चौथी प्रतिमा में चार मास तक चार-चार दत्ति लेना क्रमशः दूसरी, तीसरी और चौथी प्रतिमा कहलाती है। पांचवी प्रतिमा में पांच मास तक पांच-पांच आहार-पानी की दत्ति ली जाती है। इसी प्रकार छठी प्रतिमा में छह मास तक छह-छह दन्ति और सातवीं प्रतिमा में सात-सात दत्ति ली जाती है। .. .
आठवीं प्रतिमा में सात दिन तक चौविहार एकांतर उपवास करना, दिन में सूर्य की प्रातापना लेना, रात्रि में वस्त्र रहित रहना, रात्रि के समय चारों प्रहर सीधा सोना या एक ही करवट से सोना या कायोत्सर्ग करके बैठे-बैठे रात्रि व्यतीत करना, दैविक, नरकीय, तिर्यञ्चों सम्बन्धी उपसर्ग उपस्थित होने पर शांति एवं धैर्य से उन्हें सहन करना और चलायमान न होना।
नौवीं प्रतिमा आठवीं के समान है। विशेषता यह है कि दंडासन, लगुड़ासन या उक्कुडासन में से किसी एक आसन का प्रयोग करना चाहिए । सीधा खड़ा रहना दंडासन है। पैर की एड़ी और मस्तक का शिखा स्थान भूतल में लगा कर शरीर को कमान के समान अधर रखना लगुडासन है। दोनों घुटनों के बीच सिर मुका रखना उपकुडासन है। रात भर एक ही श्रासन से रहना चाहिए।
दसवी प्रतिमा भी श्राठवीं के ही समान है। विशेषता यह है कि गोदुहासन, वीरासन अम्बकुन्जासन, में से किसी एक श्रासन का प्रयाग करना चाहिए । जिस श्रासन का प्रयोग किया जाय उसी का रात्रि भर अवलम्बन लेना चाहिए । गाय को दुहने के लिए जिस आसन से बैठा जाता है उसे गोदुहासन कहते हैं । कुर्सी पर बैठ कर पैर ज़मीन पर लगावे और कुली हटा दने के बाद जैसा श्रासन रह जाता है वह वीरांसन कहलाता है। सिर नीचे और पैर ऊपर रखना अम्बकुन्जासन कहलाता है।
ग्यारहवीं प्रतिमा में षष्ठ भत करना चाहिए । और दूसरे दिन ग्राम से पार जाफर एक अहोरात्रि (आठ प्रहर पर्यन्त ) कायोत्सगे करके खड़ा रहना चाहिए। किसी भी प्रकार का उपसर्ग श्राने पर स्थिर भाव से उसे सहन करना चाहिए।
पारहवीं प्रतिमा में अष्टम भक्त करना चाहिए । तीसरे दिन महाभयंकर श्मशान में किसी भी एक वस्तु पर दृष्टि स्थापित करके कायोत्सर्ग करना चाहिए । उपसर्ग
शाने पर जो महामनि निश्चल बने रहते है उन्हें अवधिशान, मनापर्ययान भर . केवलशान में से किसी एक ज्ञान की प्राप्ति होती है उपसगे भाने पर जो चंच
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