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मनोनिग्रह लके और केवल लोक-दिखावे के लिए अथवा प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए अपने श्राएको त्यागी कहते हैं, तो समझना चाहिए कि वे जगत को ठगना चाहते हैं ।
इसी प्रकार अगर किली रोग-विशेष में रुग्ण, पुरुष को वैध भोजन देने का निषेध कर देता है, पर रोगी भोजन के लिए भीतर से व्याकुल रहता है तो वह भोजन का त्यागी नहीं कहला सकता।
तात्पर्य है कि राजा या समाज या जाति आदि के कठोर नियम के कारण, बिना अपनी इच्छा के, भोगोपभोग न भोगा त्याग नहीं है। जन्मजात नपुंसक स्त्री का भोग नहीं कर सकता, फिर भी शास्त्र में नपुंसक की काम-वासना, स्त्री और पुरुष की काम-वासना ले भी अधिक उग्र वतलाई गई है । जिसमें इतनी तीन काम-वासना भरी है उले ब्रह्मचारी का उच्च पद नहीं प्राप्त हो सकता। विना इच्छा के,पराधीनता के कारण भोगोपभोग न भोगना जीवित त्याग नहीं है।
मूल में ' इत्थी ' पद उपलक्षण है। उस से पुरुष का भी ग्रहण होता है। श्रर्थात् केवल पराधीनता के ही कारण स्त्री का भोग न करना जैसे पुरुष का सच्चा त्याग नहीं है, उसी प्रकार पराधीनता के कारण अगर कोई स्त्री, पुरुष का भोग नहीं करती तो वह स्त्री का सच्चा त्याग नहीं है।
का-जिसके पास रहने को अपना मकान नहीं है, पहनने को श्राभूषण नहीं हैस्त्री आदि अन्य सुख-सामनी नहीं है, वह क्या कभी त्यागी नहीं हो सकता ?
माधान-यहां दीन-दरिद्र के त्याग का निषेध नहीं किया गया है, किन्त पर बतलाया गया है कि भोगोपभोग चाहे विद्यमान हो चाहे विद्यमान न हों, पर उनकी भोर से जिनका मन विमुख नहीं हुश्रा है,ये त्यागी नहीं कहे जा सकते । अगर कोई चक्रवती पट खंड का साम्राज्य त्यागकर दीक्षित हो जाय और दीक्षित होने के पात उसे तुच्छ से तुच्छ विषय भोम की लालसा उत्पन्न हो जाय तो वह त्यागी नहीं कहला सकता। इससे विपरीत एक दरिद्र पुरुष, जिसके पास सुत्रसामग्री नहीं है, अगर दीक्षा लेकर सुन-सामग्री की लालसा त्याग देता है तो वह सच्चा त्यागी हैं। - पराधीनता, लाचारी या यलात्कार में भाव त्याग नहीं है। लोक-लाज, प्रतिष्ठा-भंग का भय, राजकीय शासन या सामाजिक बंधन इन सब वाद्य कारणों से जो त्याग अपर से लदता है, उसमें वास्तविकता नहीं होती। रास्तविक त्याग मांसिक विरक्ति से उत्पन्न होता है । वह अन्तरात्मा में उद्भूत होता है, ऊपर से नहीं
सा जाता । अतपय ऊपर से ढूंसा हुश्रा त्याग एक प्रकार का उलात्कार है, सच्चा त्याग नहीं।
सच्चा त्याग किसे करना चाहिए, यह अगली गाधा में स्त्रकार स्वयं प्रकट