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चौदहवां अध्याय
[ ५३६ अर्थात् आत्मा की शरीर के साथ ही एकता नहीं है तो फिर पुत्र, स्त्री और मित्रों के साथ क्या एक रूपता हो सकती है ? यदि शरीर के ऊपर से चमड़ी उखाड़ ली जाय तो रोमकूप कैसे रह सकते हैं ? कदापि नहीं रह सकते।।
तात्पर्य यह है श्रात्मा समस्त पदार्थों से भिन्न, अपने ही गुणों में रमा हुश्रा है। संसार के अनित्य पदार्थों के साथ उसका संबंध नहीं है। इस प्रकार विचार कर संसार में राग-भाव का त्याग करना चाहिए और आत्मशुद्धि के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
निर्गन्ध-प्रवचन-चौदहवां अध्याय समाप्त