________________
-
.
पन्द्रहवां अध्याय होने वाले को रौद्र कहते हैं। . .
• हिंसा, असत्य, चोरी और धन की रक्षा में मन लगाना रौद्ध्यान है। अथवा हिंसा आदि संबंधी अत्यन्त र परिणाम रौद्ध ध्यान कहलाता है । अथवा हिंसा के प्रति उन्मुख हुए श्रात्मा द्वारा प्राणियों को रुलाने वाले व्यापार का चिन्तन करना रौद्ध्यान है । तात्पर्य यह है कि छेदना, भेदना, काटना, मारना, वध करना, प्रहार करना, आदि के रुद्र भाव को रौद्ध्यान कहते हैं। . रौद्भध्यान के चार भेद हैं:--(१) हिंसानुबन्धी (१) वृषानुवन्धी (३ चौर्यानुवन्धी और (४) लरदाणानुबन्धी।
(क) हिसानुबन्धी रौद्ध्यान-प्राणियों को लकड़ी, कोड़ा प्रादि से मारना, उनकी नाक छेदना, अग्नि में जलाना, डाम लगाना, तलवार आदि से प्राणवध करना, अथवा इन कामों को ले करते हुए भी क्रूर परिणामों से प्रेरित होकर इन्हें करने कर सिर्फ विचार करना हिंसानुबन्धी रौद्रध्यान है।
(ब) मृषानुवन्धी रौद्रध्यान-दूसरों को कष्ट पहुंचाने वाले, दूसरों को ठगने घाले, अनिष्ट वचन बोलना, असभूत अर्थ को प्रकाशित करने वाले और लद्भुत अर्थ का अपलाप करने वाले बचनों का प्रयोग करना, तथा प्राणिघात करने वाले वचन बोलना एवं बोलने का विचार करना दूसरा मृषानुवन्धी रौद्ध्यान है। ... (ग) चौर्यानुवन्धी अध्यान-दूसरे के धन का अपहरण करने में चित्तावृत्ति होना चौर्यानुबन्धी रौद्ध्यान कहलाता है।
घ) संरक्षणानुबन्धी रौद्रध्यान-धन आदि परिग्रह की रक्षा में चित्रावृत्ति लगाना, परिग्रह-संरक्षण में विघ्न रूप प्रतीत होने वाले मनुष्य मादि के उपक्षात का रविचार होना संरक्षणानुबन्धी रौद्गध्यान कहलाता है। .
रौद्रध्यान के चार लक्षण हैं-(१) ओसन्न दोष (२) बहुल झोष (३) अज्ञान दोष और (४) आमरणान्त दोष।
(क) श्रोसत्र दोष-रौद्रध्यानी जीव हिंसा शादि पापों से निवृत्त न होने के कारण प्रायः हिंसा आदि में से किसी एक पाय से प्रवृत्ति करता है. सह सोसय दोष है।
(ब) बहुल दोष-रौद्रध्यानी जीव हिंसा आदि सभी पापों में प्रवृत्ति करता है, यह बहुल दोष है।
__() अज्ञान दोष-कुत्सित शास्त्रों के संस्कारों के कारण नरक श्रादि दुर्गतियों में ले जाने वाले हिंसा आदि अधर्म कृत्यों को धर्म समझ कर करना अशान दोष है। अथवा हिंसा शादि के उपायों में बार-बार प्रवृत्ति करना अमान दोष है । इसे जाना दोष भी कहते हैं।
(घ) आमरणात दोष-यह दोष उन्हें होता है जो अपने अतिशय र परिणाम के कारण जीवन के अन्त तक पाप करते रहते हैं और मृत्यु-काल में भी