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वैराग्य सम्बोधन
साद कर कोलों तक ले जाता है । उसे पशु की प्यास का पता नहीं और भूख का आन नहीं रहता । सदा गले में बंधन पड़ा रहता है और नाक छेद कर उसमें नकेल पहना दी जाती है | इस तरह की वेदनाएँ सहते-सहते जब वह वृद्ध हो जाता है तब उसकी समस्त शक्ति विलीन हो जाती है । उस समय भी लोभी स्वामी उसे गाड़ी,
यदि मैं जोत कर अपना स्वार्थ सिद्ध करता है । जब उससे चलते नहीं बनता तो ऊपर से निर्दयतापूर्वक ताड़न किया जाता है । अनेक प्रकार के अत्याचार उसके साथ किये जाते हैं । फिर भी वह मौन-निःशब्द रद्द कर सब कुछ सहन करता है ।
अनक पशु ऐसे हैं जिन्हें मार कर अनार्य मनुष्य भक्षण कर जाते हैं । किसी को देखते ही दुष्ट पुरुष मार डालते हैं, अतएव उन्हें बिलों में या झाड़ी आदि में लुकछिप कर अपना जीवन व्यतीत करना पड़ता है । बहुत से जानवरों को जानवर देखते ही खा जाते हैं । इस प्रकार पशुओं के प्राण निरन्तर खतरे में रहते हैं ।
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मनुष्यों की भांति पशुओं को भी अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं, पर मनुष्यों की भांति उनकी चिकित्सा नहीं होती । बेचारे दीन पशु अपनी व्याधि का वन नहीं कर सकते, अतएव वे उससे तड़फते रहते हैं - बेचैन रहते हैं, पर उन्हें कौन पूछता है ! पालतू पशुओं की भी चिकित्सा नहीं होती तो जंगल में रहने वाले उन प्रनाथ तिर्यञ्चों की बात ही क्या है ?
. इस प्रकार तिर्यञ्च जीवों की वेदनाएँ अनगिनती है । उनकी वेदनाएँ नहीं जानते हैं जो उन्हें भोगते हैं । इन वेदनाओं का खयाल करके मनुष्य को ऐसा प्रयत्न करना चाहिए जिससे उसे तिर्यञ्च योनि में तथा उससे भी श्रनन्त गुणी वेदना वाली नरक योनिमें निवास न करना पड़े।
ऐसा प्रयत्न तभी संभव है जब मनुष्य अपनी वालिशता अर्थात अता को त्याग कर दे । क्यों कि तब तक सम्यग्ज्ञान का लाभ नहीं होता तब तक सत् श्रसत् का विवेक नहीं हो सकता !
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समस्त संसार, वास्तविक दृष्टि से देखा जाय तो, ज्वर से पीड़ित पुरुष कीभांति एकान्त दुःख से घिरा हुआ है। यहां किसी को किसी प्रकार का सुख नहीं है । जो अपने आप को सुखी समझते हैं, वे अज्ञान हैं । स्वप्न देखने वाला पुरुष जैसे स्वप्न काल में राजा बन जाता है और अपनी उस स्थिति पर प्रसन्नता से फूला नहीं समाता: है उसी प्रकार संसारी जीव लक्ष्मी पाकर अपने को सुखी मानता है । किन्तु स्वप्न का राजा जैसे कुछ ही क्षणों के पश्चात् अपना भ्रम समझने लगता है उसी प्रकार संसारी प्राणी को जब किसी प्रकार की चोट लगती है और जय लक्ष्मी कुछ भी काम नहीं शाती, या लक्ष्मी उसे लात मार कर किसी अन्य पुरुष की बन जाती है तब उसे अपना भ्रम मालुम होता है ।
इसी प्रकार शरीर की सुन्दरता एवं स्वस्थता के श्रभिमान से फूला हुआ मनुष्य, अचानक किसी रोग की उत्पत्ति होते ही भयंकर वेदना भोगने लगता है और उसका भ्रम निवारण हो जाता है । सांसारिक सुख के अन्यान्य साधनों का
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