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बारहवां अध्याय: शुभ हो, जो तपत्त्वी हो अल्पभाषी हो और शान्त स्वभाव वाला हो तथा जितेन्द्रि हो, वह पद्मलेश्या वाला पुरुप है।
भाष्यः-तेजोलेश्या के स्वरूप-निरूपण के अनन्तर पद्मलेश्या का स्वरूप यहां बतलाया गया है।
पालेश्या के लक्षण इस प्रकार है:-जिसका क्रोध, मान, माया और लोभ पतला पड़ गया हो अर्थात् जिसके कपाय की तीव्रता नष्ट होगई हो, जिसका चित्त शान्त हो अर्थात् विषय भोग जन्य व्याकुलता जिसके चित्त से दूर हो गई हो, जिसने अपने मन का दमन कर लिया हो, अर्थात् वशवर्ती बना लिया हो, जिसका मन वचन और फाय शुभ अनुष्ठानों में प्रवृत्त होता हो, अशुभ प्रवृत्ति से हटा रहता हो, जो अपनी शक्ति के अनुसार शास्त्र विहित तपस्या करता हो, जो अल्प भाषण करता हो अर्थात् निरर्थक वकवाद न करता हो, और सोच विचार कर मृदु भापण करता हो. जिसके स्वभाव में उग्रता न हो, जो जितेन्द्रिय हो, वह पद्मलेश्या वाला पुरुष समझना चाहिए । यह लेश्या तिर्यंच, मनुष्य और वैमानिक देवों को ही होती है। नारको को तथा अन्य देवों को भी नील लेश्या के योग्य परिणाम-विशुद्धि नहीं हो सकती। मूलः-अहरुदाणि वजित्ता, धम्मसुक्कााण झायए।
पसंतचित्ते दंतप्पा, समिए गुत्ते य गुत्तिसु ॥ १२ ॥ सरागो वीयरागो वा, उवसंते जिइंदिए । एयजोगसमाउत्तो, सुक्कलेसं तु परिणमें ॥१३॥ छायाः प्रागदे वर्जयित्वा, धर्मशुक्ने ध्यायति ।
प्रशान्तचित्तो दान्तारमा योगवानपधानवान || 11. सरागो वीतरागो वा, उपशान्तो जितेन्द्रियः।
एल्योगसमायुकः, शुक्रलेश्यां तु परिण मेत् ॥ १४ ॥ शब्दार्थ:-श्रार्तध्यान और रौद्रध्यान को त्याग कर, धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान का चिन्तन करने वाला, प्रशान्त चित्त वाला, अन्तरात्मा का दमन करने वाला, समितियों से युक्त, तीन गुप्तियों से गुप्त, सराग संयम या वीतराग संयम का अनुष्ठान करने वाला. कपार्यों का उपशम करने वाला और जितेन्द्रिय पुरुप शुक्ल लेश्या के परिणाम वाला होता है।
भाष्यः-अन्त में शुक्ल लेश्या के परिणामों का निरूपण करने के लिए यह गाधाएँ कही गई है।
शुक्ल लेश्या स्वरूप इस प्रकार है-जो पुरुप आर्तध्यान और ध्यान का त्याग फार देता है चोर धमेध्यान या शुक्लच्यान का अचलंयन करता है, शोध मान. माया और लोभ के क्षय या उपशम होने से जिसका चित्त शान्त हो गया है. जिसने