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तेरहवां अध्याय
[ ४८१ और लोभ के संबंध जानना चाहिए।
वास्तव में कषाय कर्म बंध का प्रबल कारण है । जव जीव कषाय युक्त होता है तब वह कार्माण वर्गणा के पुद्गलों को ग्रहण करके उन्हें . कर्म रूप परिणत करता है। कषाय से ही श्रात्मा में कर्मों की स्थिति होती है और कषाय ही कमरों में फल देने की शक्ति उत्पन्न करता है । जिस जीव के कषाय का प्रभाव हो जाता है उसके
आत्मा में न तो कर्मों की स्थिति हो सकती है, न उसे कर्म फल ही प्रदान कर सकते हैं। प्रागम में कहा है
'जीवा रणे भंते ! कतिहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्म पगडीओ चिणिसु ? गोयमा ? चउहि ठाणेहिं श्रट्ट कम्मपगडीयो चिणिंसु-तंजहा-कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं। जीचा णं भंते ! कतिहिं ठाणेहिं अटु कम्म पगडीओ चिणंति गोयमा ! चर्हि ठाणेहिं, तं जहा-कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं । “जीवा णं भंते ! कतिहि ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिस्संति ! गायमा ! चरहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिस्लति । तंजहा-कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेरणं ।
भंते ! जीवों ने कितने कारणों से पाठ कर्म प्रकृतियों का चय किया है ? हे गौतम ! चार कारणों से अर्थात् क्रोध से, मान से, माया से और लोभ से। भगवन् कितने कारणों से जीव अाठ कर्म प्रकृतियों का संचय करते हैं? गौतम ! चार कारण से, क्रोध, मान माया और लोभ ले । भगवन् ! कितने कारणों से जीव आठ कर्म प्रकृतियों का संचय करेंगे ? गौतम ! चार कारणों से-क्रोध से, मान से, माया से और लोभ से।
इसी आगम में, इससे आगे पाठ कर्म प्रकृतियों के चन्ध के विषय में श्री गौतम स्वामी ने प्रश्न किये हैं और भ्रमण भगवान् ने उनका उत्तर प्रदान किया है कि, जीव क्रोध आदि चार कषायों के द्वारा पाठ कर्मों का बंध करता है, इन्हीं चार कषायों से भूतकाल में सब जीवों ने कर्म बंध किया है और इन्हीं से भविष्यकाल में कर्म बंध करेंगे।
श्रात्मा का अहित कषायों द्वारा जितना होता है, उतना किसी अन्य शह द्वारा नहीं हो सकता। कपाय भात्मा का सब से प्रवल और भयंकर शत्रु है। __ कहा भी है
श्रयमात्मैव संसारः कषायेन्द्रियनिर्जितः।
तमेव तद्विजेतारं, मोक्षमाहुर्मनीषिणः ।। अर्थात् कषाय और इन्द्रियां जिस आत्मा पर विजय प्राप्त कर लेती है जो प्रात्मा इनसे पराजित हो जाता है वही संसार रूप है । इससे विपरीत जो आत्मा कषाय और इन्द्रिय को जीत लेता है वह स्वयं मोक्ष स्वरूप है। तात्पर्य यह है कि संसार और मोक्ष रूप अवस्थाएँ कषायों के न जीतने और जीतने पर निर्भर है।।
ऐसी अवस्था में मुमुनु पुरुष का कर्तव्य स्पष्ट है। अगर वह कर्मों पर विजय