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. .वैराग्य सम्बोधन दी-जानो, और वे सव रत्न वापिस ले श्राश्रो। सब पुत्र घर से निकले और इधरउधर घूमने लगे। क्या चे लमस्त रत्ल वापिस ला सकते हैं ? नहीं। तथापि देवयोग से कदाचित् वे इस कठिन कार्य में सफलता प्राप्त कर सकें किन्तु मनुष्य भर पाकर पुण्यापार्जन न करने वाले को पुनः मनुष्य भक्-प्राप्त होना इससे भी अधिक कठिन है।
५) एक भिखारी को राशि के अन्तिम प्रहर में स्वप्न पाया कि उसने पूर्णः भासी का चन्द्रमा निगल लिया है। उसने अपने स्वप्न का हाल अन्य भिखारियों से कहा। भिखारियों ने स्वप्न का फल प्रकट करते हुए कहा-तुमने पूर्ण चन्द्रमा स्वपन में देखा है, इस लिए आज तुम्हें उसी प्रकार का पूरा रोट भिक्षा में मिलेगा। भिखारी को उस दिन सचमुच एक रोट मिल गया । उसी रात्रि में, उसी ग्राम में एक क्षत्रिय ने भी ऐसा ही स्वप्न देस्त्रा ! उसने स्वप्न शास्त्रियों के पास जाकर स्वप्न का फल पूछा । स्वप्न शानियों ने फल बताया-तुम्हें सम्पूर्ण राज्य की प्राप्ति होगी । संयोगवश उसी दिन उस ग्राम के राजा का देहान्त हो गया। वह निस्संतान था। प्राचीन काल की प्रथा के अनुसार, खूड में फूलमाला दे कर हथिनी छोड़ीगई । वह जिसके गले में माला डाल दे, वही राज्य का स्वामी बनाया जाय। इथिनी फूलमाला लिये घूमती हुई उसी राजपूत के पास आई और उसके गले में माला डाल दी। परपरा के अनुसार वह राजा सनाया गया।
जव स्वप्न में पूर्ण चन्द्र देखने वाले भिखारी को वह हाल मालूम हुआ तो वद्द, सोचने लगा-जो स्वप्न राजपूत ने देखा था । वही मैंने भी देखा था । उसे राज्य मिला और मुझे सिर्फ एक रोट । मैं अब फिर सोता है. और फिर पूर्ण चन्द्रमा का स्वप्न देख कर राज्य प्राप्त करूंगा । ' क्या मिलुक फिर वह स्वप्न देखकर राज्य प्राप्त कर सकता है ? बहुत ही कठिन है, पर एक बार मनुष्य जीवन व्यर्थ विता देने पर नर भव का लाभ पुनः होना उससे भी कठिन है।
मथरा के राजा जितशत्रु की एक पुत्री धी । राजा ने उसका स्वयंवर दिया। उसमें काठ की एक पुतली बनाई। पुतली के नीचे शाह चक्र लगाय । चक्र मिर घमते रहते थे । पुतली के नीचे तेल से भरी हुई एक कड़ाही रफ्ती गई। राजा ने यह घोषणा की कि तेल में पटने वाली पुतली की परछाई को देखकर बाट चमो के बीच फिरती हुई पुतली की याद आंख यही टीकी को बाण द्वारा वेधने वाले राजकुमार को मेरी कन्या व्याही जाएगी। स्वयंवर में सम्मिलित हुए समस्त राजा और राजकुमार पन्जा करने में असमर्थ रहे। अतएव दिस प्रकार उस पुतली सवाम नेत्रहीटीकी को धना कटिन है, उसी प्रकार वृथा व्यतीत किये एप मानक भय को पुनः माह करना दुर्लभ है।
{) एक पहा सरोवर था। उस पर काई छाई हुई थी। पर बीच में छोटा साट्रिया-हकार नहीं थी। सौ वर्ष बीत जाने पर क द इतना घाँदा
मानाशाह उसमें पाप की गर्दन समा मकती थी । एक. या खेद जय चौहा सातो एक काधा ने उसमें अपनी गर्दन ढाली मीर उ.पर की पोर जोष्टि की