________________
कषाय वर्णन . या शानन्द से प्रेरित होती है और वह उग्न कषाय युक्त परिणामों से की जाती है।
यह स्मरण रखना चाहिए कि एक ही कृत्य तीवभाव, मन्दभाव आदि से किया जाने पर विभिन्न-फल देने वाला होता है। तत्त्वार्थ-सूत्र में कहा है:-'तीव्रमन्द झाता जातभाशधिकरण वीर्य विशपेभ्यस्तद्विशेषः।' अर्थात् तीनभाव, मन्दभाव, झातभाव, अशातभाव अधिकार तथा शक्ति के भेद ले कर्म के प्रास्रव में भेद हो जाता है। नात्पर्य यह है कि तीव्र भाव स किया जाने वाला पाप अधिक अशुभ कर्म-बंध का कारण है और मन्दभाव से किया जाने वाला कम अशुभ कर्म के बंध का कारण है। इसी प्रकार 'मैं इस प्राणी को मारूं' ऐला जान बूझ कर हिंसा-पाप करने वाला अधिक पाप का भागी है और अनजान में जिससे पाप हो जाय वह कम पाप का भागी होता है । द्रव्य को अधिकरण कहते हैं और उसकी शक्ति-विशेष को वीर्य कहते हैं। इनके भेद से भी प्रास्त्रव में भेद होता है। शास्त्रव भेद से फल में भी भेद हो जाता है।
अस एवं स्थावर जीवों की हिंसा करने वाले नास्तिक को किस फल की प्राप्ति . होती है ? इसका स्पष्टीकरण शास्त्र में इस भांति किया गया है:
जाईयहं अणुपरिवट्टमाणे, तसथावरेहिं विपिघायमेति ।
से जाति जाति बहुकूरकम्मे, जं कुव्वती मिजति तेण बाले ॥ अर्थात् एकेन्द्रिय अादि प्राणियों को दण्ड देने वाला जीव बार-बार उन्हीं-एके न्द्रिय श्रादि-योनियों में उत्पन्न होता है। और मरता है। वह जल एवं स्थावरों में उत्पन्न होकर नाश को प्राप्त होता है । वह बारम्बार जन्म लेकर क्रूर कर्म करता हुश्रा, अपने कर्मों की बदौलत मृत्यु को प्राप्त होता है।
इस प्रकार परलोक संबंधी अश्रद्धा के परिणाम जानकर विवेकीजनों को श्रद्धा या होना चाहिए और इस लोक के साथ ही साथ परलोक के सुधार का प्रयत्न करना चाहिए। . मूलः-हिंसे वाले मुसावाई, माइल्ले पिसुणे सढे ।
मुंजमाणे सुरं मंसं, सेयमेनं ति मन्नइ ॥ १८ ॥ वाया:-हिको पालो नृपावादी, साथी पिशुनः ठः ।
भुजाना सुगं मांग, श्रेयों में इदमिनि मन्यते । 15॥ शब्दार्थ:--परलोक को न मानने वाला वह हिंसक, अज्ञान, मृपा भाषण करता है, नायाचार करता है, निन्दा गरता है, पर वदना करता है और मदिरा तथा मांस का वन करता ! वह मानता है कि मेरे लिए यही श्रेयस्कर है !
भाग्यः-पर नोक को न मानने वाला गुरुप हिंसक बन जाता है यह पदले यतनाया जा चुका है। परन्तु उसका पतन चही समाप्त नहीं हो जाता।'विवेकभ्रष्टानां भवति विनिपानः शतमु यात विवेक से भ्रष्ट लोगों का शत-मुख पसन होता