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लेश्या स्वरूप निरूपण अपने अन्तःकरण पर विजय प्राप्त करली है, जो पांच प्रकारकी समितियों से तथा तीन प्रकार की गुप्तियों से युक्त है जो सरांग संयम या वीतराग संयम से युक्त है श्रथवा जिसमें सूक्ष्म राग विद्यमान है या जिसका रागभाव सर्वथा क्षीण हो चुका है, जिसने मोह का उपशम कर दिया है, जो जितेन्द्रिय है, उसके शुक्ल लेश्या के परिणाम होते हैं । लेश्याओं के नाम अमुक रंग के नाम पर व्यवस्थित हैं । इसका आशय यह है कि लेश्या द्रव्य, जो अत्यन्त मलीन होते हैं, उन्हें कृष्ण लेश्या कहा गया है। जो लेश्या द्रव्य अत्यन्त स्वच्छ होते हैं उन्हें शुक्ल लेश्या कहते हैं । इसी प्रकार अन्य लेश्याओं के विषय में समझना चाहिए। इन कृष्ण आदि द्रव्यों की सहायता से आत्मा में इन्हीं के अनुरूप मलिन यादि परिणाम उत्पन्न होते हैं । कहा भी हैकृष्णादि द्रव्य साचिव्यात्, परिणामो य श्रात्मनः । स्फटिकस्येव तत्रायं, लेश्याशब्दः प्रवर्त्तते ॥
श्रर्थात् कृष्ण यदि द्रव्यों की प्रधानता से श्रात्मा में जो परिणाम उत्पन्न होता है, उसमें लेश्या शब्द प्रवृत्त होता है । जैसे स्फटिक मणि स्वभावतः निर्मल होती है, किन्तु उसके सामने जिस रंग की वस्तु रख दी जाय वह उसी रंग की प्रतीत होने लगती है, उसी प्रकार श्रात्मा में कृष्ण नील आदि द्रव्यों के संसर्ग से उसी प्रकार का परिणाम उत्पन्न होता है ।
शंका- कौन - सी लेश्या किस वर्ण वाली है ?
समाधान – कृष्ण लेश्या मेघ, अंजन, काजल, जामुन, अरीठे के फूल, कोपल भ्रमर की पंक्ति, हाथी के बच्चे, काले बंबुल के भाड़, मेघांच्छिन्न श्राकाश, और कृष्ण शोक, आदि से भी अधिक, अनिष्ट, अकान्त अप्रिय और श्रमनोज्ञ वर्ण वाली है।
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नील लेश्या भृंग, चास, प्रियंगु, कबूतर की गर्दन, मोर की ग्रीवा, चलदेव के वस्त्र, अलसी के फूल, नील कमल, नीलाशोक, और नीले कनेर से भी अत्यन्त अधिक श्रनिष्ट, अकान्त, अप्रिय वर्ण वाली है ।
कापोत लेश्या खेरसार, करीरसार, तांबा, बैंगन के फूल, और जपाकुसुम आदि से भी अधिक श्रनिष्टता वर्ण वाली होती है ।
तेजोलेश्या खरगोश के रक्त, बकरे के रक्त, मनुष्य के रक्त, इन्द्र गोप कीड़े, उदीयमान चाल सूर्य, संध्याराग, मूंगा. लाख, हाथी की तालु, जपाकुसुम, सूड़ा के फूलों की राशी, रक्तोत्पल आदि से भी अधिक लाल वर्ण वाली होती है।
पद्म लेश्या चंपा, हलदी के खंड, हड़ताल, वासुदेव के वस्त्र, स्वर्ण जुद्दी, आदि की अपेक्षा भी अधिक उज्जवल वर्ण की है ।
शुक्ल लेश्या शंकरन, शंख, चन्द्रमा, मोगरा, पानी, दही, दूध, तप्त चांदी श्रादि से भी अत्यन्त अधिक शुक्ल वर्ण वाली एवं अधिक इष्ट और मनोक्ष है ।
इस प्रकार कृष्ण लेश्या काले वर्ण की, नील लेश्या नीले वर्ष की, कापोत लेश्या