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দ্বাৰা স্পষ্ট
[ ४६३ । रहने पर देव-नारकी परलोकगमन करते हैं।
किस-किस पति में, कौनसी लश्या कितने समय तक रहती है अर्थात् लेश्याओं की स्थिति कितनी है, यह जान लेना श्रावश्यक है।
नारकी जीवों की कृष्ण लेश्या की जधन्य स्थिति पत्योपम का अपरण्यातवाँ भाग अधिकं दस सागरोपम की है और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहर्त अधिक तेतील लागरोपम की है।
नील लेश्या की जघन्य स्थिति पत्योपम का असंख्यातवाँ भाग अधिक तीन लागरोपम की और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम का अलख्यातवां भाग अधिक तीन लागरोपम की है। कापोत लेश्या की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ण स्थिति पल्योपम का असंख्यातवां भाग अधिक तीन सागरोपम की है। तीन प्रशस्त लेश्याएँ नारफी जीवों में होती ही नहीं है।
___ मनुष्यों तथा तिर्यंचों में, जिसे जो लेश्या होती हैं उसकी स्थिति अन्तर्मुहर्त की है, किंतु शुक्ल लेश्या की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट नौ वर्ष कम पूर्व कोटि की है।
देवताओं की लेश्या की स्थिति इस प्रकार है-कृष्ण लेश्या की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। कृष्रद लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति से एक समय अधिक नील लेश्या की जघन्य स्थिति और पल्योपम के असंख्यातवें भाग उत्कृष्ट स्थिति है।
भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिपी और वैमानिक देवों की तेजो लेश्या की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट स्थिति दो सागरोएम तथा एल्योपम के असंख्यातवें भाग हैं। तेजो लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति से एक समय अधिक पद्म लेश्या की जघन्य स्थिति है और अन्तर्मुहर्त शधिक दस सागरोपम.की उत्कृष्ट स्थिति है। पद्म लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति से पक समय अधिक शुक्ल लेश्या की जघन्य स्थिति होती है। शुक्ल लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहर्त अधिक तेतीस सागरोपम की है। - शुक्ल लेश्या की तथा अन्य लश्याओं की स्थिति में जो अन्तर्मुखत अधिक बतलाया गया है, वह पूर्वभव का अन्तर्मुहर्त तथा श्रागामी भव का अन्तर्मुहर्त-इस प्रकार दो अन्तर्मुहत्तों की अपेक्षा से समझना चाहिए। क्योंकि देवों की और नारको की लेश्या पूर्वभव और उत्तरभव के दो अन्तर-मुहतों से सहित अपने-अपने प्रायु व्य काल तक रहती हैं।
नारकी जीवों को रण. नील और कापोत, यह तीन ही लेश्याएं होती है। तियों में छहों लेश्याएँ होती है किन्तु एकेन्द्रियजीवों को कम्ण, नील, कापोत, और तेज-इस प्रफार चार लेश्याएँ, तेजस्काय, वायुकाय, हीन्द्रिय, त्रिन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय तियचों को नारकों के समान तीन लेश्याएं ही होती है।
संमद्धिम पंचेन्द्रिय तियों को नारकी जीवों की तरद तीन लेश्याएं होती है। गर्भज पंचन्द्रिय तियचों को छहों लेश्याएं हो सकती है । तियन यानि वाले मादा