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* ॐ नमः सिद्धेभ्य: निल्या प्रवचन
॥ बारहवां अध्याय ॥
लेश्या-स्वरूप निरूपण
श्री भगवान्-उवाचसूल:-किरहा नीला य काऊ य, तेऊ पम्हा तहेव य ।
सुक्कलेसा य छट्ठा य, नामाइं तु जहक्कम ॥१॥ छाया:-कृष्णा नीला च कापोति च, तेजः पमा तथैव च ।
शुक्रलेश्या च पष्ठीच, नामानि तु यथा क्रमम् ॥१॥ शब्दार्थ:-हे इन्द्रभूति ! लेश्याओं के यथाक्रम नाम इस प्रकार है-(१) कृष्णा लेश्या (२) नील लेश्या (३) कापोती लेश्या (४) तेजो लेश्या (५) पा लेश्या और. छठी (६) शुक्ल लेश्या।
भाष्य:-ग्यारहवें भधयन में भाषा का स्वरूप निरूपण किया गया है। भाषा शुद्धि संयम के लिए आवश्यक है उसी प्रकार लेश्या की शुद्धि भी सद्गति लाभ के लिए अत्यन्त आवश्यक है। अतः प्रस्तुत अद्ययन में लेश्या का निरूपण किया जाता
'लेश्या' शब्द 'लिश्' धातु से बना है। 'लिश' का अर्थ है। चिपकना, संबंद्ध होना । अर्थात् जिसके द्वारा कर्म श्रात्मा के साथ चिपकते हैं-यंधते हैं-उसे लेश्या कहते हैं। लेश्या प्रात्मा का शुभ या अशुभ परिणाम है।
लेश्या मूलतः दो प्रकार की होती है-(९) द्रव्य लेश्या और (२) भाव लेश्या।
द्रव्य लेश्या क्या वस्तु है, इस विषय में प्राचार्यों के अभिप्रायों में कुछ मिलता है। फिली-फिसी आचार्य के मत से द्रव्य लेश्या कर्म-वर्गपा से निष्पन्न द्रव्य है। द्रव्य लेश्या यधपि कर्म वर्गणा से बनी है, फिर भी वह वर्गया माठ कर्म से अलग है, जैसे कार्माण शरीर की वर्गणा । दूसरे भाचार्य द्रव्य लेश्या को कर्म-निष्पन्द रूप मानते हैं। किन्हीं-किन्हीं श्राचार्यों ने द्रव्य लेश्या को योग वर्मणा के अन्तर्गत स्वतंत्र द्रव्य रूप स्वीकार किया है। किन्तु द्रव्य लेश्या पौगालिक है, यह विषय निर्विवाद है। ' लेश्या के द्रव्य, कपाय को भटकाते हैं-उत्तेजित करते हैं। जैसे पित्त के प्रकोप से क्रोध की वृद्धि होती है उसी प्रकार लेश्या द्रव्यों से कपाय में उत्तेजना पाची है। लेश्या मनुभाग बंध का कारण