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चारहवां अध्याय
[ ४५३ ] छठे ने कहा-'भाई ! किसी को मारने से क्या प्रयोजन है ? हमें धन से प्रयोजन है सो जिस प्रकार धन प्राप्त किया जा सके, करलो। किसी को भी मत मारो धन लेने के लिए धनी को मार डालना उचित नहीं है।'
___ इन दो उदाहरणों से लेश्याओं का स्वरूप स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है । इन उदाहरणों में पहले-पहले पुरुषों की अपेक्षा उत्तर-उत्तर के पुरुषों के परिणाम क्रमशः शुभ, शुभतर और शुभतम है और अगले-वागले पुरुषों के परिणामों की अपेक्षा पहले वालों के परिणाम अशुभ, श्राशुभतर और अशुभतम है। इस प्रकार प्रथम पुरुप के अशुभतम परिणामों को कृष्ण लेश्या, दूसरे के अशुभतर परिणामों को नील लेश्या, तीसरे के अशुभ परिणामों को कापोत लेश्या, चौधे के शुभ परिणामों को तेजा लेश्या, पांचव के शुभतर परिणामों को पझलेश्या एवं छठे पुरुष के शुभत न परिणामों को शुक्ल लेश्या समझना चाहिए ।
सूत्रकार ने 'जहकम' पद से यही श्राशय प्रकट किया है कि यह लेश्याएं कृष्ण, नील भादि जिस क्रम से यहां गिनाई गई हैं उसी क्रम से उनकी शुद्धता वढती
मूलः-पंचासवप्पवत्तो, तीहिं प्रगुत्तो छसुं अविरो य । .
तिवारंभ परिणत्रो, खुद्दो साहासो नरो ॥२॥ निद्धंधसपरिणामो, निस्संसो अजिइंदियो । एअजोगसमाउत्तो, किराहलेसं तु परिणमे ॥३॥ छाया:-पञ्चानवप्रवृत्तलिभिरगुप्त पट्सु अविरतश्च ।
तीवारम्भपरिणतः चन्दः साहसिको नरः ।।२।। निध्वंसपरिणामः, नृशंसोऽजितेन्द्रियः।
एतयोग समायुकः, कृष्णे लश्यां तु परिण मेत् ॥ ३ ॥ शब्दार्थः-इन्द्रभूति ! हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्य, एवं परिग्रह रूप पांच आस्रवों में प्रवृत्ति करने वाला, मन, वचन और काय की गुप्ति से रहित, पटकाय के . जीवों की रक्षा से निवृत्त न होने वाला, तीन आरंभ में प्रवृत्त, तुद्र प्रकृति वाला, बिना सोचे-समझे काम करनेवाला, ऐहिक पारलौकिक ? दुःख कीशका रहित परिणाम वाला, मूर, इन्द्रियों का दास, इन सब दुर्गुणों से युक्त मनुष्य कृष्णलेश्या के परिणाम वाला समझना चाहिए।
___ भाष्यः-पहली गाथा में लेश्या के भेद बतलाने के पश्चात् सूत्रकार क्रम से लश्याओं का स्वरूप चतला रहे है । यहां पहली कृष्ण लेश्या का स्वरूप बतलाया गया है।
जो जीव अहिंसा आदि पांचों पापों में लगा रहता है, मन वचन काय के