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भाषा-स्वरूप वर्णन
अगर यह कहा जाय कि हम लोगों में उसका शरीर देखने की शक्ति नहीं है, तो भी सन्देह बना ही रहता है कि क्या हम अपनी शक्ति के कारण देव का शरीर नहीं देख पाते या शरीर का अभाव होने के कारण नहीं देख पाते ? इस सन्देह का निवारण करने के लिए आपके पास कोई प्रमाण नहीं है, तो देव का शरीर श्रदृश्य किस प्रकार स्वीकार किया जा सकता है ?
इस प्रकार कोई भी देव, लोक का निर्माता सिद्ध नहीं होता । देव के कर्तृत्व का जिस प्रकार विचार किया गया है उसी प्रकार ब्रह्म के जगत्-कर्तृत्व पर विचार करना चाहिए ।
वैशेषिक दर्शन के अनुयायी ईश्वर को जगत् का कर्त्ता स्वीकार करते हैं । उनका कथन इस प्रकार है
एक, व्यापक, स्वतंत्र, सर्वज्ञ और नित्य ईश्वर ने इस जगत् का निर्माण किया है । चिना किसी के बनाये जगत् वन नहीं सकता, श्रतएव कोई पुरुष इसका निर्माता होना चाहिए । जो इसका निर्माता है. उसीको ईश्वर कहते हैं ।
पृथ्वी, पर्वत, पेड़ आदि किसी बुद्धिमान् कर्त्ता ने बनाये हैं, क्योंकि यह कार्य हैं, जो कार्य होता है वह बुद्धिमान् कर्त्ता का बनाया हुआ होता है, जैसे घट | पृथ्वी, पर्वत आदि कार्य हैं इसलिए वे भी किसी कर्त्ता के बनाये हुए हैं । इनका बनाने वाला जो कोई बुद्धिमान् कर्त्ता है वही ईश्वर है ।
वह कर्त्ता ईश्वर एक है । यदि जगत् का बनाने वाला एक नहीं माना जायगा और बहुत से कर्त्ता माने जाएँगे तो उनमें कभी मतभेद खड़ा हो जायगा । एक कर्त्ता मनुष्य के दो हाथ, दो पैर और दो नेत्र बनायेगा और दूसरा कर्त्ता चार हाथ, तीन पैर और चार-छह नेत्र बना देगा | इस प्रकार एक-एक वस्तु भिन्न-भिन्न रूप से चनने लगेगी, तो अंधेर मच जायगा । श्रतएव जगत् का एक ही कर्त्ता मानना चाहिए ।
ईश्वर सर्वव्यापी भी है। अगर उसे सर्वव्यापी अर्थात् सम्पूर्ण लोक में ठसाठस भरा हुआ न माना जाय तो सब जगह के सब कार्य वह यथोचित रीति से सम्पन्न नहीं कर सकेगा । किन्तु लब कार्य व्यवस्थित रूप से होते हैं अतएव वह व्यापक हैं ।
ईश्वर स्वाधीन है, क्योंकि वह अपनी इच्छा से संसार के सब प्राणियों को सुख दुःख रूप फल देता है । अगर उसे स्वतंत्र न माना जाय, पराधीन माना जाय तो वह जिसके अधीन होगा वही सच्चा ईश्वर कहलायेगा - ईश्वर ईश्वर नहीं रह जायगा ।
ईश्वर नित्य है । वह अनादि काल से हैं और अनन्त काल तक रहेगा । वह सदा एक रूप रहता है । वह सब का उत्पादक है, पर किसी से उत्पन्न नहीं होता । अगर ईश्वर का उत्पादक कोई हो भी तो उसे नित्य माना जायगा या श्रनित्य माना जायगा ? यदि वह नित्य है तो ईश्वर को ही नित्य मानने में क्या हानि है ? अगर ईश्वर का उत्पादक भी अनित्य माना जाय तो फिर उसका भी कोई उत्पादक मानना पड़ेगा । इस प्रकार ईश्वर के उत्पादकों का कहीं अन्त नहीं श्रायगा और परिणाम