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भाषा-स्वरूप वर्णन
सृष्टि रचना है । जब उसकी इच्छा होती है तब रचता है, जब इच्छा नहीं होती तब नहीं रचता । तो यह पूछा जा सकता है कि ईश्वर की इच्छा यदि स्वयमेव चिना किसी चाह्य कारण के उत्पन्न होती है तो वह सदैव क्यों नहीं उत्पन्न होती ? उसके कभी-कभी उत्पन्न होने का क्या कारण हैं ? जिसकी उत्पत्ति किसी अन्य कारण पर निर्भर नहीं है, वह सदा उत्पन्न होनी चाहिए |
उल्लिखित प्रकार से विचार करने पर ईश्वर की नित्यता भी खंडित हो जाती है | अतएव अनेक विशेषणों से विशिष्ट ईश्वर को जगत् का कर्त्ता मानना तर्क-संगत नहीं है ।
संसार के समस्त प्राणी स्वार्थसिद्धि के लिए किसी कार्य में प्रवृत्त होते हैं या करुणा बुद्धि से प्रवृत्ति करते हैं। यहां यह विचारणीय है कि ईश्वर किस उद्देश्य से जगत् का निर्माण करता है ? ईश्वर कृतकृत्य है, उसे कुछ प्राप्त नहीं करना है, उसके लिए कुछ भी साध्य शेष नहीं रहा है। ऐसी स्थिति में वह स्वार्थ से प्रेरित होकर जगत् का निर्माण नहीं कर सकता ।
रही करुणा- बुद्धि सो | दूसरे के दुःख को दूर करना करुणा है । जगत् का निर्माण करने से पहले, जीवों को किसी प्रकार का दुःख नहीं था, तब उसने क्यों सृष्टि उत्पन्न की ?
शंका- सृष्टि से पहले जीव दुखी क्यों नहीं थे ?
समाधान- जब शरीर होता है, इन्द्रियां होती हैं और इन्द्रियों के विषय होते हैं, तभी दुःख की उत्पत्ति होती है । इन सब के अभाव में कोई जीव दुःखी नहीं हो सकता | सृष्टि रचने से पूर्व इन सब को अभाव था, अतएव दुःख का भी प्रभाव था । इस प्रकार जब दुख ही विद्यमान न था तब किसका नाश करने के लिए ईश्वर में करुणा की भावना उत्पन्न हुई होगी ? इस प्रकार सृष्टि रचना का उद्देश्य ही स्थिर नहीं हो पाता ।
तात्पर्य यह है कि ईश्वर को जगत् का कर्त्ता मानने में अनेक आपत्तियां हैं, जिनका निराकरण नहीं हो सकता । यही नहीं इससे ईश्वर का स्वरूप विकृत हो जाता है और उसे अनेक दोषों का पात्र बनना पड़ता है । श्रनएव ईश्वर को जगत् का कर्त्ता कहना श्रज्ञानमूलक मृषावाद है ।
सांख्यदर्शन के अनुयायी कहते हैं कि यह लोक प्रधान श्रादि के द्वारा रचा. गया है। यहां 'आदि' शब्द से काल, स्वभाव, यहच्छा और नियति का ग्रहण गिया गया है ।
सांय दर्शन में प्रकृति एक मूल तत्व है, जिससे यह विशाल जगत् उत्पन्न हुना बतलाया जाता हैं । सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण की साम्य अवस्था प्रकृति कहलाती है । इन गुणों का जब वैषम्य होता है तो सृष्टि का आरंभ होता है। सृष्टि की उत्पत्ति का क्रम इस प्रकार है।