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व्यारहवां अध्याय करते हैं तो बीज की एकान्त नित्यता खंडित हो जाती है। इसी प्रकार सहायक कारण देव में किसी प्रकार की विशेषता उत्पन्न करते हैं तो देव नित्य नहीं रह सकता, क्यों कि किसी प्रकार की विशेषता उत्पन्न होना ही पदार्थ की अनित्यता कहलाती है। ऐसी दशा में या तो देव को नित्य नहीं मानना चाहिए या सहकारी कारणों द्वारा उसमें विशेषता उत्पन्न होना नहीं स्वीकार करना चाहिए।
शंका-देव को नित्य मानने से यदि इतने दोष पाते हैं तो उसे अनित्य मान लेते हैं । अनित्य मानने में क्या हानि है ?
__ समाधान-तुह्मारा देव अगर अनित्य है तो वह स्वयं ही उत्पत्ति के अनन्तर नष्ट हो जायगा । जब वह अपनी ही रक्षा नहीं कर सकता तो संसार के समस्त कार्यों की चिन्ता किस प्रकार कर सकेगा?
इसके अतिरिक्त, अनित्य होने से उसका भी कोई का मानना पड़ेगा जो उस का कर्ता होगा वह असली देव कहलायमा, आपके देव का देवत्व ही छिन जायगा। इस प्रकार न तो देव को नित्य माना जा सकता है, न अनित्य माना जा सकता है।
अच्छा यह चताइए कि आपका देव मूर्त है या अमूर्त है ? अगर वह अमूर्त अर्थात् अशरीर है तो प्राकाश की तरह वह लोक का कर्त्ता नहीं हो सकता। तात्पर्य यह है कि देव, लोक का कर्ता नहीं है, क्योंकि वह अशरीर है, जो शरीर होता है वह कर्ता नहीं होता, जैसे आकाश अथवा मुक्तात्मा । आएका माना हुआ देव भी शरीर है अतएव वह लोक का कर्ता नहीं हो सकता।
देव को अगर मूर्त अर्थात् सशरीर माना जाय तो यह बताना पड़ेगा कि उस का शरीर दृश्य है या अदृश्य ? अर्थात् जैसे हम लोगों का शरीर दिखता है वैसे ही उसका शरीर दिखता है या पिशाच आदि के शरीर की भांति उसका शरीर अदृश्य है ? यदि दृश्य शरीर वाला है तो प्रत्यक्ष से वाधा आती है, क्योंकि हम लोगों को उसका शरीर कभी दृष्टिगोचर नहीं होता। इसके अतिरिक्त हमारे शरीर की भांति ही उसका शरीर है तो वह हमारी ही तरह कार्य भी करेगा । ऐसी अवस्था में इस विशाल विश्व का निर्माण किस प्रकार कर सकेगा ? एक पर्वत या समुद्र आदि बनाने में ही उसे पर्याप्त समय लग जायगा । तो सृष्टि में होने वाले अनन्त कार्यों को वह कर और फिस प्रकार करेगा ?
यदि पिशाच के शरीर के समान अदृश्य अशरीर वाला है तो यह बताइए कि उसका शरीर अदृश्य क्यों है ? क्या हम लोगों में उसे देखने की शक्ति नहीं है या उसके शरीर का माहात्म्य ही ऐसा है कि वह दृष्टिगोचर नहीं होता? अगर यह कहा जाय कि उसका माहात्म्य ही उसके शरीर की अदृश्यता का कारण है तो उसके लिए • कोई प्रमाण उपस्थित करना चाहिए । जब तक आप उसका माहात्म्य सिद्ध न करदें तब तक उसका शरीर अहय नहीं माना जा सकता और जब तक उसका शरीर अदृश्य सिद्ध न हो जाय तब तक माहात्म्य सिद्ध नहीं हो सकता । दोनों शतों की सिद्धि एफ-दूसरे पर निर्भर है, अतः दोनों में से एक भी सिद्ध नहीं होती।