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ग्यारहवां अध्याय
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सहन करता भी है, परन्तु इससे उसकी सहन शक्ति की वृद्धि नहीं मानी जा सकती वह श्राशावान् है - लोभ से अभिभूत है, और लोभ ने उसके अन्तःकरण को इतना निम्न श्रेणी का चना दिया है कि वह दुर्वचनों को, भीतर ही भीतर तिलमिलाते हुए भी, सहन करता है । ऐसी अवस्था में उसका सहना उसके कषाय संबंधी उपशम का द्योतक नहीं है प्रत्युत लोभकषाय की अधिकता का ही सूचक है । अतएव लोभ से लोहे के तीर, कांटे या इनके सदृश वचन सहन कर लेने वाला व्यक्ति पूजनीय नहीं है, वरन् दयनीय है - करुणा का पात्र है ।
जो महापुरुष कानों में कांटों के समान चुभने वाले, अथवा तीर के समान आघात करने वाले अत्यन्त कर्कश वचनों को, विना किंचित् लोभ के, निःस्वार्थ भाव से, सहन कर लेता है वह पूज्य है । निस्वार्थ होकर कठोर दुर्वचनों को वही सहन कर सकता है, जिसके क्रोध आदि कपायों का उपशम हो गया है, जिसने समता भाव प्राप्त कर लिया हैं और जो निन्दा तथा स्तुति में विषाद एवं हर्ष का अनुभव नहीं करता । ऐसा महापुरुष निन्दक के प्रति किंचित् मात्र भी रोष और प्रशंसक के प्रति किंचित् भी तोप धारण नहीं करता है । निन्दक के प्रति वह विचार करता है -
मन्निन्दया यदि जनः परितोष मेति, नन्वप्रयत्न सुलभोऽयमनुग्रहो मे । श्रेयोऽर्थिनोऽपि पुरुषाः पर तुष्टिहेतोः,
दुःखार्जितान्यपि धनानि परित्यजन्ति ॥
अर्थात् मेरी निन्दा करने से यदि किसी मनुष्य को संतोष मिलता है, तो चिना हो किसी प्रयत्न के यह मेग बढ़ा अनुग्रह है। अपने श्रेय-साधन करने के अभिलापी पुरुष, दूसरों के संतोष के लिए अत्यन्त कष्ट उठाकर उपार्जित किया हुआ धन भी त्याग देते हैं ! तात्पर्य यह है कि दूसरे लोग, पर के संतोष के लिए धन का त्याग करते हैं, और मैं बिना कुछ त्याग किये ही अपने निन्दक को सन्तोष पहुंचा देता हूँ । यह मेरे लिए दुःख की बात नहीं वरन् श्रानन्द की बात है !
इस प्रकार अपना मन समझा कर महापुरुप निन्दक के प्रति क्रोध का भाव उत्पन्न नहीं होने देते । इसी प्रकार गाली देने वालों के प्रति भी समभाव धारण करते हैं। किसी ने उचित ही कहा है
ददतु ददतु गालीं गालिमन्तो भवन्तः, वयमपि तदभावाद् गालिदानेऽसमर्थाः : । जगति विदितमेतद् दीयते विद्यमानम्,
न हि शशक विषाणं कोऽपि कस्मै ददाति ॥
अर्थात् - श्राप गाली वाले हैं, तो गाली ही दीजिए। हमारे पास गालियों का 1.अभाव है, अतएव उनका दान करने में असमर्थता है । यह तो सारा संसार जानता
कि जिसके पास जो है, वह वही दे सकता है। क्या कोई किसी को खरगोश का सोग दे सकता है ? नहीं, क्योंकि वह विद्यमान ही नहीं है ।