________________
ग्यारहवां अध्याय
. [ ४२१ ) का दोप लगेगा। इस दोष से बचने के लिए ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। अगर कभी इस प्रकार का अभिप्राय प्रकट करना पड़े तो 'तुमारे यहां कल आने का विचार है', 'एक वर्ष पश्चात् अमूक कार्य करने का भाव है, इत्यादि रूप से प्रकट करना चाहिए। अवधारिणी भाषा का यही अभिप्राय है और इसका त्याग करने पर भी वाणी व्यवहार का उच्छेद नहीं हो सकता।
जिस मापा के प्रयोग से अन्य प्राणियों का उपघात होता है, उन्हें कष्ट पहुँचता है, ऐसी भाषा भी नहीं बोलनी चाहिए।
जिन-जिन कारणों से ऐसी भाषा बोली जाती है उनका उल्लेख करते हुए सूत्रकार ने कहा है कि-क्रोध से लोभ से, भय से, तथा हंसी से ऐसी भाषा नहीं बोलना चाहिए । क्रोध के श्रावेश में मनुष्य उचित-अनुचित का विचार भूल जाता है। उस समय मनुष्य के मस्तिष्क में एक प्रकार की उन्मतत्ता व्याप्त हो जाती है, अतएव क्रोध का परित्याग करना चाहिए और जव क्रोध का श्रावेश हो तब मौन ही साध लेना चाहिए । इसी प्रकार लोभ भी असत्य भाषण का कारण है । लोभ के वशीभूत हुश्रा प्राणी पापमय भाषा का प्रयोग करता है। हँसी भी असत्य भाषण का कारण है। कभी-कभी हँसी-दिल्लगी में अत्यन्त अनर्थकारी वचन निकल जाते हैं। इसलिए इन सब कारणों का परित्याग करें और इनमें से किसी से भी प्रेरित होकर भाषण न करें।
कोई-कोई लोग हँसी में किये हुए अनुचित या असत्य भापण को दोषपूर्ण नहीं मानते । कहा भी है-'न नर्मयुक्तं वचनं हिनस्ति' अर्थात् हास्ययुक्त वचन दूपित नहीं है। इस कथन का निराकरण करने के लिए यहां हास्य करते हुए भाषण करने का निषेध किया गया है। इसी में अनेक प्रकार से अनुचित शब्द निकल जाते हैं और कभी-कभी उनका परिणाम घोर अनर्थकारी सिद्ध होता है। अतएव हास्य करते हुए भी पसे वचनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए जिससे किसी को किसी प्रकार की बाधा पहुँचती हो। मूलः-अपुच्छितो न भासेज्जा, भासभाणस्स अंतए ।
पिट्टिमंसं न खाएज्जा, मायामोसं विवज्जए.॥७॥ छाया-यपृष्टो न भाषेत, भापमाणस्यान्तरा।
पृष्टमांस न खादव,मायामपां विवर्जयेत॥७॥ शब्दार्थः-वार्तालाप करते हुए मनुष्यों के बीच में,बिना पूछे नहीं बोलना चाहिए, चुगली नहीं खानी चाहिए और माया-मृपा का त्याग करना चाहिए।
भाष्यः-भले मनुप्य को भाषण संबंधी विवेक प्राप्त करके मौन-साधन करना सर्वोत्तम है, किन्तु स्व-पर के उपकार आदि व्यवहारों की सिद्धि के लिए जय चोलना आवश्यक हो तो कम से कम बोलना चाहिए । उस कम भाषण में भी निम्न लिखित तीन बातों का सदैव ध्यान रखना चाहिए ।