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भाषा-स्वरूप वर्सन (१) दो या अधिक व्यक्ति जव बोल रहे हों तो उनके बीच में, जब तक वे कोई वात पूछे नहीं तब तक नहीं बोलना चाहिए। इस प्रकार बीच में बोल उठने से उनके वातालाप में विघ्न पड़ता है। उन्हें वह भाषण अरुचिकर हो सकता है और साधु की लघुता होती है और शासन के गौरव में न्यूनता पाती है। . . (२) किसी व्यक्ति ने, किसी दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध कोई बात कही हो. फिर . भले ही वह सत्य हो या मिथ्या, उसके परोक्ष में, दुष्ट वुद्धि से प्रेरित होकर दूसरे से कह देना चुगली कहलाता है । उसे प्राकृत भाषा में ' पिट्टिभंस ' कहते हैं। तात्पर्य यह है कि चुगली खाना पीठ का मांस खाने के समान गर्हित कृत्य है। इससे अनेक अनर्थ होते हैं, अतएव भले मनुष्यों को चुगली खाने का सर्वथा ही परित्याग करता चाहिए।
(३) तीसरी बात है मायामृषा का त्याग । कपट से युक्त मिथ्या भापण करना मायामृषा कहलाता है । जो साधु उत्कृष्ट प्राचारसम्पन्न नहीं है, वह दूसरों को अपनी उत्कृष्टता का भान कराने के लिए यदि कपट और मिथ्यावाद का श्राश्रय लेता है और अपने मान-सम्मान की कामना करता है तो वह उत्कृष्टाचारी होने के बदले हीनाचारी ही होता है । अतएव साधु पुरुष को माया-मृषा (कूड़-कपट) से रहित होकर निश्छल व्यवहार ही करना चाहिए। मूलः-सक्का सहेउं प्रासाइ कंटया,अशोमया उच्छहया नरेणं।
अणासए जोउ सहेज कंटए,वईभए करणसरेस पुजोक छायाः-शक्या सोढुमाशया कण्टकाः, प्रयोमया उत्सहभानेन नरेण । .
अनाशया यस्तु सहेत कण्टकात् , बाड्मयान् कर्णशरान् सःपूज्यः ॥ ८॥ . शब्दार्थः-आशा से मनुष्य लोहमय कंटक या तोर उत्साह पूर्वक सहन करसकता है, किन्तु विना किसी प्रकार की आशा के, कानों के लिए तीर की तरह, वाचनिक कंटकों को जो सहन कर लेता है, वह पूजनीय है। . . भाष्यः-शास्त्रकार ने यहां दो बातों पर सुन्दर शैली से प्रकाश डाला है। प्रथम यह कि दुर्वचनों की कठोरता कितनी अधिक होती है, और दूसरी यह कि जो महापुरूप कठोर वचन लहन कर लेते हैं, वे अत्यन्त श्रादरणीय होते हैं।
यहां यह अाशंका की जा सकती है कि जो लोग, दूसरों के दास हैं या सेवक हैं, वे अपने स्वामी के दुर्वचन सदैव सहन करते हैं । अगर कोई स्वामी क्रोध शील होता है तो वह पल-पल पर अपने स्वामी के क्रोध का पात्र बन कर असंख्य गालियाँ सुनता है । ऐसी अवस्था में उसे पूजनीय क्यों न माना जाय ?
इस आशंका का समाधान करते हुए सुत्रकार कहते हैं कि श्राशा से अर्थात् लोभ के वशीभूत होकर मनुष्य लोहे के तीर या कांटे सहन कर लेता है। अथवा तीर और कांटे के समान वाग्वाण भी सहन कर सकता है और उत्साह के साथ