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प्रमाद-परिहार(६) देश छंद कथा--विभिन्न देशों में विवाह आदि की जो भिन्न-भिन्न प्रथाएँ प्रचलित हैं, इनका कथन करना । जैसे-दक्षिण में मामा की लड़की के साथ विवाह . संबंध किया जाता है, अरब में काका की लड़की से भी विवाह किया जा सकता है, श्रादि।
(४) देश ने पथ्य कथा--विभिन्न देशीय स्त्री-पुरुषों के वेश, विभूषा और स्वभाव आदि का वर्णन करना।
देश कथा करने से राग-द्वेष की उत्पत्ति होती है, और राग-द्वेष से कर्म-वध होता है। ज्ञान-ध्यान आदि की साधना में विघ्न पड़ता है और अनेक अचिन्त्य. अनर्थ उत्पन्न हो जाते हैं । अतएव भक्त कथा सर्वथा त्याज्य है। .
(४) राज कथा-राजा संबंधी कथा करना राज कथा है। इसके भी चार भेद है। जैसे-(१) राज-अतियान कथा (२) राज-नियाण कथा (३) राज-बलबहान कथा तथा (४)राज-कोष-श्रागार कथा। .
(१) राज-अतियान कथा-किसी राजा के नगर प्रवेश का वर्णन करना तथा उस समय के उसके ऐश्वर्य का वस्नान करना।
(२) राज-निर्याण कथा-राजा के नगर से बाहर निकलने का तथा तत्कालीन ऐश्वर्य का वर्णन करना।
(३) राज-बलवाहन कथा--राजा की सेना का तथा उसके रथ, घोड़ा, हाथी आदि का वर्णन करना। ...
(४) राज-कोष आगार कथा--राजा के खजाने का वर्णन करना और उसके भोजन सामग्री वाले कोठार आदि का वर्णन करना।
राज कथा करने से अनेक अनर्थ होते हैं । राजा आदि इस कथा को सुनकर - साधु पर गुप्तचर या चोर होने का संदेह करते हैं। अगर कभी कोई वस्तु चोरी चली
गई हो तो इस कथाकार को ही चोर समझकर सताते हैं । राजकथा सुनने वाला साधु अगर पहले राजा हो तो उसे अपने भोगोपभोगों का स्मरण हो पाता है अथवा किसी साधु को उसी प्रकार के भोगोपभोग, ऐश्वर्य श्रादि प्राप्त करने की अभिलाषा उत्पन्न हो जाती है । इस प्रकार राज कथा अनेक अनर्थों की जननी है।।
___ यह सब विकथाएँ संयम-जीवन की साधना से प्रतिकूल हैं। निरर्थक हैं। संयम में विघ्नकर हैं । श्रतएव इनका कहना और सुनना सर्वथा हेय है। . इस प्रकार जो साधु पांचों प्रमादों का परित्याग करता है वही अपने अल्प- कालीन जीवन का सार्थक उपयोग करता है। वही अपने वर्तमान को तथा भविष्य को कल्याण-परिपूर्ण बनाकर लोकोत्तर सुख का पात्र हो जाता है।
भगवान् ने अपने प्रधान अन्तेवाली गौतम को एक समय मान भी प्रमाद न करने का उपदेश दिया है। इससे प्रतीत होता है कि जीवन के निर्माण में एक समय का भी बहुत अधिक महत्व है।