________________
दसवां अध्याय
॥ ३७७ । भाष्यः-पृथ्वीकाय की कायस्थिति का निरूपण करके यहां जलकाय अग्निकाय और वायुकाय की कायस्थिति का वर्णन किया गया है ।।
इल गाथाओं का अर्थ पूर्वोक्त अनुसार ही है। सभी की उत्कृष्ट काय स्थिति नसंख्यात काल तक है। अर्थात् जीव इन कायों में से किसी भी काय में जावे तो असंख्य काल पर्यन्त वहां व्यतीत करता है। इसलिए मानव भव पाकर प्रमाद का परित्याग करके ऐसा प्रयत्न करो, जिससे इन कायों में यमन करके दुःख न उठाने पड़ें।
अपकाय की जघन्य भव स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की है। अपकाय का वर्ण लाल, स्वभाव ढीला और संस्थान जल के वुवुद के समान है। इसकी कुल कोटियां सात लास्म है अर्थात् जलकाय के सात लाख करोड़ कुल हैं।।
वाजुकाय की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट तीन हजार वर्ष है । वर्ण हरित है। कुल कोटियां सात लाख हैं । संस्थान ध्वजा के समान है। मूल:-वणस्सइकायमइगो, उक्कोसं जीवो उ संबसे ।
कालमणंतं दुरंतयं, समयं गोयम ! मा पमायए । छायाः-वनस्पतिकायमतियतः, उत्कर्पतो जीवस्तु संवसेत् ।
कालमनन्तं दुरन्तं, समयं गौतम ! मा प्रमादीः ॥ ६ ॥ शब्दार्थ:-हे गौतम ! वनस्पतिकाय में गया हुआ जीव उत्कृष्ट अनन्त काल तक यहां निरन्तर निवास करता है, अतएव एक समय मान भी प्रमाद न करो।
भाग्य:-यहां वनस्पतिकाय की काय-स्थिति अनन्तकाल चतलाई गई है। शेष नाथा का व्याल्यान पूर्ववत् ही समझना चाहिए।
वनस्पतिकाच की भवस्थिति जवल्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की है। इसका स्वभाविक वर्ण नील है। संस्थान और स्वभाव विविध प्रकार है। इसके २८ लाख करोड़ कुल हैं।
शंका-सूत्रकार ने पृथ्वीकाय, अप्काय आदि को जीव रूप में वर्णित किया है, किन्तु इनमें जीव के कोई असाधारण गुण प्रतीत नहीं होते, ऐसी अवस्था में इन्हें जीव मानने से क्या प्रमाण है ?
समाधान-सर्व प्रथम तो हमें अपने ज्ञान की जुद्रता समझ लेनी चाहिए। जगत् में इतनी अधिक वस्तुर है कि उन सन्द में से स्थूल वस्तुओं के भी विविध गुणों को, उनकी वास्तविकता को समझना बड़े-बड़े विद्वानों के लिए भी असंभव है। सूक्ष्म पदरयों की बात ही दूर है संसार के छद्मस्थ मनुष्यों ने जगत् का जितना स्वरूप जान पाया है, वह यज्ञात रूप के सामने नगण्य है। ऐसी स्थिति में सिर्फ अपनी चुद्धि को शाधार बनाकर कोई भी निर्णय करना अभ्रान्त नहीं हो सकता। हमें अतीतकाल के महर्पियों के अनुभव की प्रमाणता स्वीकार करनी होगी, क्योंकि उन्होंने