________________
दसवां अध्याय
[ ३८६ ]
श्रद्धा का भाव रखना चाहिए। कुगुरु, कुदेव और कुधर्म का सेवन कदापि नहीं करना चाहिए | जिन पुण्यात्माओं को दुर्लभ श्रद्धा भी प्राप्त हो गई है उन्हें एक समय का भी प्रमाद न करके संयम यादि का अनुष्ठान करना चाहिए ।
मूल :-- धम्मं पि हु सहहंतया, दुल्लहा कारण फासया ।
इह कामगुणेहि मुच्छिया, समयं गोयम ! मा पमायए २०
छाया:-धर्ममपि हि श्रद्द्धतः, दुर्लभका कायेन स्पर्शकाः ।
इह कामगुणैर्दिताः समयं गौतम ! मा प्रमादीः ॥ २० ॥
शब्दार्थ :- हे गौतम ! धर्म पर श्रद्धान करते हुए भी उसे शरीर से स्पर्श करना अर्थात् श्रद्धा के अनुसार धर्माचरण होना दुर्लभ है, क्योंकि संसार में बहुत-से लोग काम-भोगों में मूर्छित हो रहे हैं इसलिए समय मात्र का भी प्रमाद मत करो ।
भाष्यः-- श्रन्नतानुबंधी कषाय तथा दर्शमोहनीय कर्म का क्षय या उपशय आदि अन्तरंग कारण तथा निर्मन्थ गुरु का समागम श्रादि वहिरंग कारणों का योग होने पर धर्म - श्रद्धा उत्पन्न हो जाती है । इस श्रद्धा के जागृत होने से पुरुष सार असार का विवेक करने लगता है । वह कामभोगो को हेय समझने लगता है और संयम के अनुष्ठान की आकांक्षा भी रखता है, किन्तु प्रत्यानयानावरण और प्रत्याख्यानावरण कषायों का उदय होने से न तो देश संयम की आराधना कर पाता है और न सर्वविरती संयम की ही। इसीलिए सूत्रकार ने यहां कहा है कि श्रद्धान होने पर भी धर्म का स्पर्श होना अर्थात् प्राचरण करना कठिन है ।
जिन्होंने इन कपायों का क्षय आदि करके संयम के अनुष्ठान की योग्यता को अभिव्यक्त कर लिया है, वे धन्य और मान्य हैं । उन्हें संसार-सागर से पार उतरने की बहुत सी अनुकूलता प्राप्त हुई है । अतएव उन्हें एक समय मात्र भी प्रमाद नहींकरना चाहिए । प्रमाद के प्रभाव से सुनि तत्काल सप्तम गुणस्थान से पतित होकर गुणस्थान में जाता है और प्रमाद हीन होते ही सप्तम गुणस्थान में पुन: श्रारूढ़ हो जाता है । इसीसे प्रमाद का श्रात्मा पर पड़ने वाला प्रभाव स्पष्ट जाना जा सकता है । तव जिन्हें धर्म की स्पर्शना प्राप्त हो गई है उन्हें एक समय मात्र का भी प्रमाद न करके आत्मकल्याण की उत्कृष्ट साधना करना चाहिए ।
मूल:- परिजूरई ते सरीरयं, केसा पंडुरया हवंति ते ।
से सोयबले य हायह, समयं गोयम ! मा पमायए ॥ २१ ॥
छाया-परिजीर्यति ते शरीर, केशा पाएदुरका भवन्ति ते ।'
तव श्रोत्रमलंच होते, समयं गौतम ! मा प्रमादी ॥ २१ ॥
शब्दार्थ:-- हे गौतम! तेरा शरीर जीर्ण हो रहा है, केश तेरे सफेद होते जाते हैं,