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नववां अध्याय
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जैसे भ्रमर बहुत फूलों से थोड़ा-थोड़ा रस लेता है इसी प्रकार साधु गृहस्थों के नेक गृहों से थोड़ा-थोड़ा आहार ग्रहण करे (४) भ्रमर के समान श्रावश्यक्ता से - धिक आहार आदिरूपी रस का संग्रह न करे (५) साधु, भ्रमर के समान चिना आमंत्रण के ही भिक्षा के लिए गृहस्थी के घर पहुंचे (६ भ्रमर के समान निर्दोष आहार रूपी केतकीं से सन्तोषी रहे (७) भ्रमर के समान अपने लिए वना हुआ आहार न लेवे ।
(८) मृग - [१] लाघु मृग के समान पाप रूपी सिंह से भयभीत हो [२] मृग के समान दोष रूप सिंह से श्राक्रान्त आहार ग्रहण न करे [ ३ ] मृग के समान प्रति बंध रूप सिंह से डरता हुआ एक स्थान पर न रहे [४. मृग के समान रोग आदि कारणों से एक जगह रहे [५] रोग उत्पन्न होने पर मृग के समान उत्सर्ग औषधोपचार न करे [६] रोम उत्पन्न होने पर मृग के समान अन्य स्वजन आदि का आश्रय न चाहे [७] रोग मुक्त होने पर मृग के समान प्रतिबंध विचरण करे ।
(६) पृथ्वी - [ १ ) साधु, पृथ्वी के समान समभाव से शीत, उष्ण आदि सहन करे [२] पृथ्वी के समान संवेग, वैराग्य आदि रूप वसु [धन] को धारण करे [३] पृथ्वी
समान ज्ञान एवं धर्म रूपी बीजों की उत्पत्ति का कारण बने [४] पृथ्वी के समान अपनी [ अपने शरीर की ] शोभा- वृद्धि आदि न करे [५] पृथ्वी के समान, कष्ट देने वाले की किसी से फरियाद न करे [ ६ ] पृथ्वी के समान, अन्य जनों के संसर्ग से उत्पन्न हुए क्लेश रूपी कीचड़ का अन्त करे [७] पृथ्वी के समान साधु प्राण, भूत, जीव और सत्व का श्राधारभूत हो ।
. [१०] कमल - [१] साधु कमल के समान काम रूप कीचड़ से तथा भोगोपभोग रूप जल से अलिप्त रहे [२] साधु कमल के समान सदुपदेश रूपी शीतल सुरभि का संचार कर भव्यजीव रूप लोक को शान्ति एवं सुख प्रदान करे (३] पुण्डरीक कनल के लमान साधु वेष रूपी रूप तथा यश रूप सुगंध से सुशोभित हो [४] साधु उत्तम जन रूपी सूर्य के दर्शन से प्रफुल्लित हो [५] साधु कमल के समान विकसित रहे [६] साधु कमल के समान श्रईत् की श्राज्ञा रूपी सूर्य की ओर ही उन्मुख रहे [७] साधु कमल के समान धर्मध्यान, शुक्लध्यान से अपना अन्तर शुद्ध रखे ।
[११] सूर्य - [१] साधु सूर्य के समान ज्ञान रूप किरणावली के द्वारा धर्म का प्रकाश प्रसारित करे [२] सूर्य के समान भव्य जनों के हृदय-कमल का विकासक हो [३] सूर्य समान ज्ञानान्धकार का अंत करे [४] सूर्य के समान तपस्तेज से तेजस्वी हो [५] सूर्य के समान अपने प्रकृष्ट प्रताप से मिथ्यात्वी रूप तारागण की प्रभा को क्षीण करे [६] सूर्य के सदृश क्रोध रूप अनि के तेज को निरोहित करे [७] सूर्य के सदृश रत्नत्रय की सहस्त्र किरणों से सुशोभित हो ।
[१२] वायु- [१] साधु के समान सर्वत्र विहार करे [२] वायु के सहय अप्रतिबंध विहार करे [३] वायु के सदृश द्रव्य-भाव उपाधि से हलका हो [४] वायु