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नववा अध्याय
[ ३५६ ] और [४] पर शरीर संवेगनी।
___ इहलोक संवेगनी-इस तोक की अनित्यता, विषय भोगों की निस्सारता, मानव की उत्पत्ति के समय होने वाले कष्ट, इत्यादि का कथन करना । जैसे-मानव जीवन जल के बुलबुले के समान क्षण भंगुर है, जन्म-जरा-मरण के दुःखों से व्याप्त है, आदि
पर लोक संवेगनी-स्वर्ग के देवता भी वियोग, विषाद, भय, इर्ष्या श्रादि से व्याकुल हैं। उनके सुख भी नाश शील है, इत्यादि प्रकार से परलोक ले विरक्ति उत्पन्न करने वाली कथा पर लोक-संवेगनी कथा है।
स्वशरीर संवेगनी-यह शरीर अशुचि का पिंड है। इसकी उत्पत्ति शुचि पदार्थों से हुई है और अशुचि पदार्थों पर ही यह टिका हुआ है। संसार में इससे अधिक अपवित्र वस्तु और क्या है, जिसके संयोग मान से समस्त पदार्थ अत्यन्त अशुचि बन जाते हैं ! यह शरीर भीतर से अत्यन्त घृणा जनक है। मल-मूत्र आदि का थैला है। इस प्रकार शरीर से विरक्ति उत्पन्न करने वाली कथा स्वशरीर संवगनी है।
परशरीर संवेगनी--किसी मुर्दे शरीर के स्वरूप का कथन करके विरक्ति उत्पन्न करने वाली कथा परशरीर संवेगली है।
. (४) निर्वेदनी कथा-इसलोक एवं परलोक में पाप, पुण्य के शुभाशुभ फल का निरूपण करके संसार ले उदासीनता उत्पन्न करने वाली कथा निवेदनी कहलाती है। इसके भी चार प्रकार हैं।
(६) पहली निवेदनी कथा-इस लोक में किये हुए दुष्ट कर्म, इसी भव में दुःख दायक होते हैं, चोरी, पर स्त्री गमन आदि । इसी प्रकार इस जन्म में किये हुए शुभ कार्य इसी जन्म में, सुख रूप फल प्रदान करते हैं। जैसे तीर्थकर भगवान को दान देने से सुवर्ण वृष्टि रूप फल इसी जन्म में, तत्काल मिलता है। इस प्रकार का व्याख्यान करना पहली निवेदनी कथा है।
(२) द्वितीय निर्वेदनी कथा-जीव इस जन्म में जो अशुभ कर्म करता है उसे परलोक में उनका अशुभ फल प्राप्त होता है । यथा-महारंभ, महा परिग्रह आदि नरक गमन योग्य अशुभ कर्म करने वाले जीव को परलोक में नरक का अतिथि बनकर घोर कष्ट सहने पड़ते हैं। इसी प्रकार इस लोक में किये हुए शुभ कार्यों का फल परलोक में सुखदायक होता है, जैसे साधु इस जन्म में जिस संयम, तप आदि की साधना करते हैं उसका फल उन्हें परलोक में प्राप्त होता है।
(३) तृतीय निर्धेदनी कथा-परलोक में किये हुए अशुभ कर्म इस लोक में फल प्रदान करते हैं । जैसे परलोक में किये हुए अशुभ कर्मों के फल स्वरूप जीव इस लोक में, हीन कुल में उत्पन्न होकर, बचपन से ही अंधा, कोड़ी, भादि होता है। इसी प्रकार परलोक में कृत शुभ फमों का फल सुख रूप इस लोक में प्राप्त होता है। जैसे पूर्व जन्म में आचरण किये हुए शुभ कर्मों के उद्य से वर्तमान जन्म में तीर्थकरत्व की