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धर्म-निरूपण पडिमा (6) प्रेषणारंभ पडिमा (१०).उद्दिष्ठत्याग पडिमा और (११) श्रमणभूत पडिमा, यह श्रावक की ग्यारह पडिमाएँ हैं। . . भाव्यः-गृहस्थ श्रावक अपनी विशिष्ट शुद्धि के लिए ग्यारह विशुद्धि स्थानों का सेवन करता है। इन स्थानों का सेवन करने से श्रात्म-शुद्धि के साथ ही श्रमणचारित्र के परिपालन करने का अभ्यास भी होता है । अतएव श्रावक को इन का प्राचरण करना चाहिए । पडिमाओं का स्वरूप इस प्रकार है:-- .
(१) दर्शन पडिमा एक मास तक शंका, कांक्षा आदि दोषों से रहित, सर्वथा निर्दोष सम्यक्त्व का पालन करना।
(२) व्रत पडिमा--पहली पडिमा के अनुष्ठान के साथ दो मास तक निरतिचार बारह व्रतों का पालन करना.। किसी प्रकार का. अतिचार न लगावें।
(३) सामायिक पडिमा--पहली और दूसरी पडिमा के अनुष्ठान के साथ तीन माल तक सामायिक के समस्त दोषों से बचकर प्रातःकाल, मध्यहनकाल, और संध्याकाल में सामायिक करे। .
(४) पोषध पडिमा-पूर्वोक्त तीनों पडिमाओं का आचरण करते हुए चार मास तक पोषध के १८ दोषों से रहित होकर अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमावस्या को पोपधोपवास करना।
(५) *प्रतिज्ञा पडिमा--पूर्वोक्त चार पडिमाओं का अनुष्ठान करते हुए पाँच माल तक पाँच नियमों का पालन करे । पाँच नियम यह हैं-(१) बड़ा स्नान न करना (२) क्षौर कर्म न करना, (३) पाँव में जूता न पहनना, (४) धोती की एक लांग खुली रखना, (५) दिन में ब्रह्मचर्य पालना।
(६) ब्रह्मचर्य पडिमा--पूर्वोक्त पाँचों पडिमाओं का अनुष्ठान करते हुए छह मास पर्यन्त विशुद्ध और अखंड ब्रह्मचर्य का पालन करना।
.. (७) सचित्तत्याग पडिमा--पिछली छहों पडिमानों को पालते हुए सात मास तक सब प्रकार की सचित वस्तुओं के उपभोग, परिभोग का परित्याग करना ।
(5) अनारंभ पडिमा--पूर्वोक्त लातों पडिमाओं का आचरण करते हुए पाठ माल तक पृथ्वी, जल, तेज, वायु, वनस्पति तथा ऋस काय का स्वयं प्रारंभ न करना।
__(8) प्रेषणारंभ पडिमा--पिछली पाठों पडिमाओं का श्राचरण करते हुए पृथ्वी आदि षटकाय का आरंभ दूसरे से न कराना।
(१०) उद्दिष्टत्याग पडिमा--पूर्वोक्त ,नव पडिमाओं के,विधान का पालन करते हुए दस मास पर्यन्त, अपने लिए बनाये हुए आहार को ग्रहण न करना।
(११) श्रमणभूतपडिमा-पूर्वोक्त दस पडिमाओं के अनुष्ठान के साथ ग्यारह ... * प्रतिज्ञा पडिमा के स्थान परं किसी-किसी ग्रन्थ में कायोत्सर्ग पडिमा का विधान देखा जाता है । देखो हेमचन्द्राचार्य कृत योग शास्त्र, तृतीय प्रकाश ! ..
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