________________
आठवां अध्याय
[ ३१७ | वातावरणं अत्यन्त स्वच्छ, सर्वथा विकारहीन, शान्त और सौम्य होता था । बालक पच्चीस वर्ष की अवस्था तक ब्रह्मचर्य का पालन करता हुआ सब प्रकार की विद्या और कला की शिक्षा ग्रहण करता था। इस प्रकार बाल्यकाल में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करने के कारण लोगों का शारीरिक संगठन खूप दृढ़ होता था और वे दीर्घ जविन प्राप्त करते थे, साथ ही स्वस्थ, बलिष्ठ और विविध प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न होते थे। आज वह परम्परा विच्छिन्न हो जाने से वालक विकारमय वातावरण में बाल्यावस्था व्यतीत करते हैं और अनेक अज्ञान माता-पिता तो कोमल वय में ही विवाह करके उनके जीवन के सर्वनाश की सामग्री प्रस्तुत कर देते हैं । युग युगान्तर से ब्रह्मचर्य की महिमा के गीत गाने वाले धर्म प्रधान इस देश में जितनी छोटी उम्र में बालकों का विवाह हो जाता है, वैसा किसी अन्य देश में नहीं !
ब्रह्मचर्य के विषय में अनेक भ्रम जनता में फैले हुए हैं। कोई यह समझता है कि गृहस्थ ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकता और कोई-कोई ब्रह्मचर्य की प्रशंसा करते हुए भी उसे असाध्य समझते हैं । इन भ्रमों का निराकरण करने के लिए कुछ पंक्तियां लिखना आवश्यक है ।
वीर्य - रक्षा की आवश्यक्ता प्रत्येक प्राणी को है। चाहे वह साधु हो, चाहे गृहस्थ हो । अपनी वासनाओं पर पूर्ण विजय प्राप्त न कर सकने के कारण गृहस्थ पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य न पाल सके तो उसके लिए एक देश ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए | पर स्त्रियों में मातृ-बुद्धि रखना चाहिए । स्वस्त्री में संतुष्ट रहकर तीव्र काम-भोग की अभिलाषा का त्याग करना चाहिए । दिवा ब्रह्मचर्य की आराधना करना चाहिए । काम-वासनावर्द्धक चेष्टाएं नहीं करना चाहिए। पूर्ण ब्रह्मचर्य पालन का संकल्प करते रहकर यथा शक्ति तैयारी करना चाहिए । राजस और तामस आहार से बचना चाहिए । इस प्रकार संयम के अनुकूल आहार-विहार करते हुए जीवनपालन करना चाहिए । धर्म भावना के साथ समय बिताने से काम-वासना को गृहस्थ भी शिकरूप में अवश्य जीत सकता है ।
जो लोग ब्रह्मचर्य को असाध्य समझते हैं, उन्हें प्राचीन काल के महात्माश्र के पवित्र चरित पढ़ना चाहिए। उन्होंने जीवन का जो क्रम वनाया था उस क्रम पर चलन से ब्रह्मचर्य असाध्य नहीं रह सकता । ब्रह्मचर्य को असाध्य मानना श्रात्मा की शक्ति को अस्वीकार करना है । जो आध्यात्मिक पक्तियों से अनभिज्ञ हैं और प्रबल विकार के शिकार हैं वही विकार- विजय को असंभव समझते हैं ।
ब्रह्मचर्य - - साधना के लिए और उसकी रक्षा के लिए इस अध्याय की यादि ही नव बाड़ों का उल्लेख किया गया है । उनके अतिरिक्त थोड़ी-सी बातें यहां दी जाती है, जो ब्रह्मचर्य की लाधना के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं । वे यह हैं
(९) पवित्र संकल्प - अर्थात् भावना की पवित्रता । भावना में श्रद्भुत शक्ति 'है भावना अन्तः संसार में और बाह्य जगत् में अनेक प्रकार के कार्य सदा करती रहती है। उसका शरीर और वचन पर गहरा प्रभाव पड़ता है । भावना में अपूर्व निर्माण