________________
-
श्राठवां अध्याय
[ ३११ । वे भी उसी की ओर खिंचे जा रहे हैं । इस श्राकर्षण से प्रायः कोई नहीं बच पाया।
जो लोग अपने आपको शक्तिशाली समझते हैं, अजेय मानते हैं, वे लोग भी स्त्री के समीप होते ही असमर्थ से बन जाते हैं। उनका अभिमान पल भर में नष्ट हो जाता है। यथा
च्याकर्णिकेसर-करालमुखा मृगेन्द्राः, नागाश्च भूरिमदराजिविराजमानाः । मेधाविनश्च पुरुषाः समरेषु शूराः, स्त्रीसनिधौ परम कापुरुषा भवन्ति ।
अर्थात् फैली हुई अयाल के कारण विकराल मुख वाले केसरी सिंह, भरते हुए मद से सुशोभित हस्ती, बुद्धिशाली पुरुष, युद्ध में वीरता प्रदर्शित करने वाले शूरवीर, स्त्री के लमीप पहुंचते ही बिलकुल कायर बन जाते हैं। बुद्धिमानों की बुद्धि, शूरवीरों की शूरवीरता, निविवेकियों का विवेक, स्त्री के समीप न जाने कहां हवा हो जाता है !
मनुष्यों और पशुत्रों की बात जाने दीजिए । एकेन्द्रिय होने के कारण जिनकी संज्ञा प्रायः व्यक्त नहीं है, जिनमें चैतन्य की मात्रा अधिकांश में आवृत है, ऐसे वृक्ष भी इस प्रलोभन से नहीं बच पाते।
इस प्रकार स्त्री रूप अाकर्षण संसार में सर्वत्र च्यात है । इल आकर्षण की प्रवलता का विचार करके तथा इसके भयंकर परिणाम का विचार करके अपना क्षेमकुशल चाहने वालों को सदैव बचना चाहिए। मूलः-एए य संगे समइक्कमित्ता, सुहुत्तरा चैव भवति सेसा ।
जहा महासागरमुत्तरित्ता, नई भवे अवि गंगासमाना।१६॥ छायाः-एतांश्च संगान् समतिकम्प, सुखोत्तर.श्चैव भवन्ति शेपाः।
यथा महासागरमुत्तीर्य, नदी भवेदपि गंगासमाना॥१६॥
शब्दार्थ:-इस स्त्री-प्रसंग का त्याग करने के पश्चात् अन्य संग (वासनाएँ) सुगमता से त्यागी जा सकती हैं । जैसे महासमुद्र को पार कर लेने के पश्चात् गंगा के समान नदी भी सरलता से पार की जा सकती है।
भाष्यः-स्त्री-संभोग सम्बन्धी वासना की उत्कृष्टता बतलाई जा चुकी है। अन्यान्य वासनाओं की तुलना इसके साथ करते हुए सूत्रकार ने बतलाया है कि अन्य चासनाएँ अगर नदी के समान हैं तो काम वासना महासमुद्र के समान है। महासमुद्र को पार करना जैसे कठिन है, उसी प्रकार काम-वासना को पार करना अत्यन्त कठिन है। जो सत्त्वशाली पुरुप महासमुद्र को पार कर लेते हैं, उनके लिए बड़ी से बड़ी नदी भी तुच्छ-सी है। वे उसे सहज ही पार करते हैं। श्रतएव वासनाओं पर विजय पाने की इच्छा रखने वाले पुरुषों को सर्वप्रथम और पूर्ण शक्ति के साथ इस वासना को जीतना चाहिए।