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ब्रह्मचर्य-निरूपण दुराचारिणी स्त्रियां तथा वेश्याएं अनेक-चित्ता होती हैं। अनेक चित्ता के दो अर्थ है-अनेक पुरुषों में शासक्त चित्त वाली एवं चंचल चित्तवाली । वेश्या कभी किसी पुरुष में एकाग्र-मनस्का नहीं होती। पुरुष उसका खिलौना है । धन लूटना उसका व्यवसाय है। जिसले जब ज्यादा धन की प्राप्ति होती है, तब वह उसी की बन जाती है और कुछ ही क्षणों के पश्चात् किसी और की हो रहती है। किसी कवि ने ठीक ही कहा है:
जात्यन्धाय च दुर्मुखाय च जराजीर्णाखिलांगाय च, . ग्रामीणाय च दुष्कुलाय च गलत्कुष्टाभिभूताय च। यच्छान्तीषु मनोहरं निजवपुर्लक्ष्मीलवश्रद्धया,
पण्यस्त्रीषू विवेककल्पलतिकाशस्त्रीषू रज्येत कः ? ॥ अर्थात् जो वेश्याएँ थोड़ा सा धन प्राप्त करने के लिए, जन्मांध, दुर्मुख, वृद्धावस्था के कारण शिथिल अंग वाले, गँवार, अकुलीन, कोढ़ी आदि सभी प्रकार के पुरुषों को अपना सुन्दर शरीर सौंप देती हैं, अतएव जो विवेक रूपी कल्पलता को काटने के लिए कुठार के समान हैं, उन वेश्याओं पर कौन बुद्धिमान पुरुष अनुरक्त होगा ? अर्थात् कोई भी नहीं
. और भी कहा है.. .अन्यस्मै दत्तसङ्केता, याचतेऽन्यं स्तुते परम् ।
. श्रन्यश्चित्ते परः पार्थे, गणिकानामहो नरः॥ .
अर्थातः-आश्चर्य है कि वेश्याएँ एक को संकेत देती हैं, दूसरे से याचना . करती हैं और तीसरे पुरुष की तारीफ करती हैं। उनके चित्त में कोई और पुरुष
होता है पर बगल में और ही कोई होता है ! यह गणिकापा का सामान्य स्वभाव है। फिर भी पुरुष अंधा होकर उन पर अनुराग करता है ! - कुलटा स्त्रियां या वेश्याएँ किसी सत्पुरुष के हृदय में कदाचित् स्थान पा लेती हैं तो उसके भी समस्त सद्गुणों का सर्वथा-समूल विनाश कर डालती हैं। कपटाचार, कठोरता, चंचलता, कुशीलता आदि उनके स्वभाव-सिद्ध दोष हैं। वास्तव में उनके दोषों का पूर्ण रूप से वर्णन होना ही संभव नहीं है । ऐसा समझकर विवेकी पुरुषों को ऐसी स्त्रियों पर जरा भी अनुराग नहीं करना चाहिए और न उनकी प्रतीति करनी चाहिए।
यह स्त्रियां अनेक प्रकार के प्रलोभनों के पाश फैलाकर पुरुषों को उनमें फँसा लेती हैं। जव पुरुष उनके पाश में फँस जाता है तब उसकी दशा एक दास के समान हो जाती है। क्रीत दास जैसे अपने स्वामी के इशारे पर नाचता है, उसी प्रकार वह पुरुष उन स्त्रियों के इशारे पर चलता है। वह धर्म-कर्म को. विस्मरण कर बैठता है, लोक-लजा को तिलांजलि दे देता है, विश्वासघात करता है, अपनी प्रीतिपात्री की कामनापूर्ति के लिए चोरी, द्यूत आदि निन्दनीय कार्यों में प्रवृत्ति करने लगता हैं ।
है कि उसे देखकर ही लोग घृणा व्यक्त