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धर्म-निरूपण उन्हें बेकार बना देना नहीं हैं । प्राचीन वृत्तान्तों से ज्ञात होता है कि अनेक लोगों ने अपनी अमुक इन्द्रिय को वश न कर सकने के कारण वेकार बना दिया । किसी ने अपने नेत्र फोड़ डाले और किसी ने अन्य इन्द्रिय को नष्ट कर डाला। इस प्रकार का इन्द्रिय-दमन एक जाति की हिला है और उसले इन्द्रिय-दमन का प्रयोजन प्रांशिक रूप में भी सिद्ध नहीं होता। ऐसा करना अज्ञान मूलक है और दुर्वलता का सूचक है।
इन्द्रियों का राजा मन है । मन ही इन्द्रियों को विषयों की और प्रेरित करता है। जब तक मन पर अधिकार न किया जाय तब तक इन्द्रियों के निरोध का कोई अर्थ नहीं है। इसी लिए मन को ही वंध और मोक्ष का कारण बतलाया गया है। अतएव मन की उच्छंखलता को रोकना यही प्रधान इन्द्रिय-दमन है। जो तपस्वी मन को वश में कर लेता है-उसे अपनी इच्छा के अनुसार चलाता है-स्वयं उसके इंगित पर नहीं चलता, वह अनायास ही इन्द्रियों का स्वामी बन जाता है । उसकी इन्द्रियां दासी की भांति उसके अनुसार प्रवृत्त होती हैं । यही इन्द्रिय-दमन का वास्तविक अर्थ है।
अपचित मांस-शोणित-अर्थात् जिसका मांस और रक्त क्षीण हो गया हो। यद्यपि शरीर की कृशता में इसका समावेश हो सकता है तथापि धर्म-साधन में शरीर का मोह नहीं रखना चाहिए, यह बात विशेष रूप से प्रकट करने के लिए यह विशेषण प्रयुक्त किया गया है।
सुव्रत-सम्यक् प्रकार से व्रतों का अनुष्ठान करने वाला । व्रतों का सम्यक् अनुष्ठान करने के लिए सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान की आवश्यकता है। श्रतएव जो सम्यक्त्व प्राप्त करने के पश्चात् व्रतों का आचरण करता है वही सुबत या सुव्रती कहलाता है।
प्राप्त निर्वाण-तृष्णा से रहित । जो सांसारिक पदार्थों और भोगोपभोगों की इच्छा से रहित हो।
'जिस पुरुष में उल्लिखित विशिष्टताएँ पाई जाती हैं वही सच्चा ब्राह्मण या महान कहलाता है। मूलः-जहा पोम्मं जले जायं, नोवलिप्पइ वारिणा ।
एवं अलितं कामेहि, तं वयं बूम माहणं ॥ १७॥ छाया:-यथा पग जले जातं, वोपलिप्यते वारिणा।
__एवमलिप्तं कामः, तं वयंवमो ब्राह्मणम् ॥ १५ ॥ ... शब्दार्थः-जैसे कमल जल में उत्पन्न होकर भी जल से लिप्त नहीं होता, इसी प्रकार जो काम-भोगों से अलिप्त रहता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।
भाष्यः-ब्राह्मण का विषेश रूप से स्वरूप प्रदार्शत करने के लिए कहा गया है कि कमल जल में ही उत्पन्न होता है और जल में ही रहता है, फिर भी वह जल से ..