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द्वितीय अध्याय
[ १२१ ]
मृत्यु उपस्थित होने पर जीव अकेला ही परलोक जाता है और परलोक से अकेला
श्राता है। ऐसा जानकर विद्वान पुरुष किसी को अपना शरण नहीं समझता । विवेकीजन कभी यह नहीं सोचते कि कोई मेरे कर्मोदय जन्य फल में भाग लेगा ।
मूलः - चिच्चादुपयं च चउप्पयं च
सम्म
वित्तं सिंहं धणधरणं च सव्वं । सो पाइ,
परं भवं सुन्दरं पावगं च ॥ २५ ॥
छाया:- त्यक्त्वा द्विपदं चतुष्पदं च, क्षेत्रं गृहं धनधान्यं च सर्वम् । स्वकर्मद्वितीयोऽवशं प्रयाति परं भवं सुन्दरं पापर्क वा ॥ २५ ॥ शब्दार्थः--यह जीव द्विपद, चतुष्पद, क्षेत्र, गृह, धन-धान्य आदि समस्त पदार्थों को छोड़ कर, सिर्फ अपने कर्मों के साथ, पराधीन होकर उत्तम या अधम- - स्वर्ग या नरक आदि -- लोक को प्रयास कर जाता है
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भाग्य:- सूत्रकार ने यहां परिग्रह की पृथक्ता दिखलाते हुए अपने किये हुए कर्मों का साथ जाना प्रगट किया है । संसारी जीव मोह का मारा दिन-रात धनसम्पत्ति संचित करने में लगा रहता है। संपत्ति का संग्रह करने के लिए वह अपनी पद - मर्यादा को भी भूल जाता है और येन-केन-प्रकारेण अधिक से अधिक संचय करने का प्रयत्न करता है । वह लोभ से इस प्रकार ग्रसित हो जाता है कि अल्पप्रारंभ और महा-प्रारंभ का तनिक भी विचार नहीं करता। धन जोड़ने के लिए यह मोही जीव हिंसा करता है, त्रस और स्थावर प्राणियों के प्राण लूटता है, असत्य आपण करता है, चोरी करता है । कोई अपने प्राणों की भी परवाह न करके पैसे के लिए युद्ध में लड़ने जाता है, कोई डाका डालता है, कोई सट्टा आदि नाना प्रकार का जुआ खेलता है, कोई पन्द्रह कर्मादानों का सेवन करता है । धन के लिए कोई अपने से अधिक धनवान् की चाकरी स्वीकार है । पद-पद पर अपमान सहन करता है । देश विदेशों में भ्रमण करना है । समुद्र- यात्रा करता है । अपने प्राणों को हथेली पर रखकर अत्यन्त साहसपूर्ण कार्य करता है । सारांश यह है कि परिग्रह के पाश में जकड़ा हुआ मोही जीव धन-सम्पत्ति का संग्रह करने के लिए सब प्रकार के निंदनीय कार्य करने पर उतारू रहता है । जगत् में जितने भीषण पाप होते हैं वे सब के सब प्रायः परिग्रह के लिए ही होते हैं । परिग्रह के लिए मनुष्य सदा श्राकुल- व्याकुल बना रहता हैं । यद्यपि प्रयत्न करने पर भी लाभ उतना ही होता है जितना लाभान्तराय कर्म का क्षयोपशम हो, किन्तु मनुष्य को जरा भी संतोष श्रौर साता नहीं है । लखपति करोड़पति बनना चाहता है । मकान वाला महल बनवाना चाहता है | अकेला आदमी कुटुम्ब की सेना तैयार करना चाहता है । प्राप्त वस्तुओं में किसी को संतोष नहीं है । पर इन सब पदार्थों का अन्त में परिणाम क्या है ? क्या यह सब पदार्थ
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