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शान-प्रकरण ... समाधान-जो लोग सिर्फ ज्ञान से मुक्ति मानते हैं उन्होंने बंध मिथ्याज्ञान से । माना है, यह ठीक है। पर मिथ्याज्ञान, ज्ञान की ही एक विकारमय अवस्था है और सम्यक्त्व-मिथ्यात्व की अपेक्षा न करके मिथ्याज्ञान को भी सामान्य रूप.से ज्ञान कहा जा सकता है। अतएव सूत्रकार का कथन संगत ही है । तात्पर्य यह है,कि जैसे शान और क्रिया दोनों को स्वीकार करने वाले बंध का कारण मिथ्याज्ञान और असंयम दोनों मानते हैं उस प्रकार ज्ञान कान्तवादी नहीं मानते। वे असंयम या अविरति को बंध का कारण न स्वीकार करते हुए मिथ्याज्ञान को ही बंध का कारण मानते हैं और मिथ्यांज्ञान भी सामान्यं की अपेक्षा ज्ञान ही है इसलिए 'ज्ञान से बंध-मोक्ष मानते हैं' यह कथनं प्रयुक्त नहीं कहा जा सकता। . • जैसे मोक्ष ज्ञान और क्रिया अर्थात् सम्यज्ञान और सम्यक्चारित्र कारणक हैं . उसी प्रकार संसार उनसे विपरीत मिथ्याज्ञान और मिथ्यांचारित्र मूलक है । संसार बन्धनात्मक होने से यहाँ बंध को ही संसार कहा गया है। मुक्ति से यह बात भलीभाँति सिद्ध होती है । यथा-संसार मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्रं कारणंक है, क्योंकि इनके नाश होने पर संसार का भी नाश हो जाता है, जो जिसके नाश होने से नष्ट . होता है वह तत्कारणक ही होता है, जैसे वात के विचार से उत्पन्न होने वाला रोग, बात की निवृत्ति से निवृत्त होता है अतएव वह रोगः वात निमित्तक माना जाता है। इसी प्रकार मिथ्यानान आदि की निवृत्ति से भव की निवृत्ति होती है अतएव भव मिथ्यानान आदि कारणों से उत्पन्न होता है। ................
यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि यहाँ यद्यपि सम्यक्ज्ञान और चारित्र को मोक्ष का तथा मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र को संसार का कारण कहा गया है, तथापि सम्यग्दर्शन भी मुक्ति का कारण है और मिथ्यादर्शन भी संसार का. कारण है। उनका साक्षात् शब्दों द्वारा कथन इसलिए नहीं किया गया है कि जान में ही दर्शन का समावेश हो जाता है। अतएव संसार के कारण मिथ्यादर्शन मिथ्याज्ञान -
और मिथ्याचारित्र हैं। इनके क्षय से संसार का क्षय होता है। जैसे-मिथ्यादर्शन का क्षयःहोने से अनन्त संसार का क्षय हो जाता है, अर्थात् सम्यग्दृष्टि:जीव का संसार परिमित-संख्यात भव ही शेष रह जाता है। मिथ्याज्ञान के क्षय से भी इसी प्रकार संसार का क्षय होता है और मिथ्याचारित्र का क्षय होने से संसार का समूल. ही विनाश हो जाता है। इससे यह स्पष्ट है कि संसार के कारण मिथ्यानान आदि ही हैं। - शंका:-बंध तत्त्व के विवेचन में पहले पाँच कारणों से बंध होना कहा है और जितने कारणों से बंध होता है उनके विरोधी उतने ही कारणों से मोक्ष भी होना चाहिए अर्थात् मोक्ष के भी पाँच कारण होना चाहिए। फिर श्राफ रत्नत्रय को ही मोक्ष का कारण क्यों कहते हैं ? '.. समाधान-बंध के कारणों के प्रतिपक्ष भूत सम्यग्दर्शन, विरति, अप्रमत्तता निष्कपायता और अयोगत्व को मोक्ष का कारण मानना हमें अनिष्ट नहीं है प्रत्युत इन पाँच कारणों से मोक्ष होना हमें अभीष्ट ही है, पर विरति आदि चार कारण