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सम्यक्त्व - निरूपण..
छाया: - मिथ्यादर्शनरक्ताः सनिदाना हि हिंसकाः । इति ये म्रियन्ते जीवाः, तेषां पुनर्दुर्लभा बोधीः ॥ ६ ॥
शब्दार्थः - मिथ्यादर्शन में आसक्त, निदान - सहित और हिंसक होते हुए जो जीव मरते हैं, उन्हें पुनः सम्यक्त्व की प्राप्ति दुर्लभ है ।
भाष्यः - सम्यग्दर्शन के अंगों का निरूपण करके यह बताया जा रहा है कि जो इन अंगों का सेवन नहीं करते, श्रतएव जो मिथ्यादृष्टि हैं, उन्हें क्या फल प्राप्त होता है ?
मन
जो जीव मिथ्यादर्शन से युक्त हैं अर्थात् कुगुरु, कुदेव, कुधर्म और कुतत्त्व पर श्रास्ता रखते हैं, जो निदान शल्य वाले हैं अर्थात् श्रागामी विषय-भोगों की आकांक्षा में रखकर धर्म क्रिया करते हैं और जो हिंसक हैं अर्थात् जीव-बंध रूप पाप-कर्म हैं, वे यदि इन दोषों से युक्त होते हुए मरते हैं तो मिथ्यादृष्टि होने के कारण तथा निदान और हिंसा शील होने से उन्हें सम्यक्त्व की प्राप्ति होना बहुत कठिन होता है ।
में
मूलगाथा में ' पुण ' शब्द यह सूचित करता है कि मिथ्या दर्शन में आसक्ति आदि कारणों से जिन्होंने सम्यक्त्व का वमन करदिया है, उन्हें फिर से अर्थात् आगामी भव में सम्यक्त्व दुर्लभ हो जाता है ।
मूलः - सम्मदंसणरत्ता, अनियाणा सुकलेसमोगाढा । इय जे मरंति जीवा, सुलहा तेसिं हवे बोही ॥१०॥
छाया: सम्यग्दर्शनरका प्रनिदाना शुक्लेश्यामवगाढाः । इति ये म्रियन्ते जीवाः, सुलभा तेषां भवति बोधिः ॥ १० ॥
शब्दार्थः--जो जीव सम्यक् दर्शन में आसक्त हैं, निदान से रहित हैं, शुक्ल लेश्या से सम्पन्न हैं, उन्हें सम्यक्त्व की प्राप्ति सुलभ होती है ।
प
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भाष्यः - मिथ्यादर्शन आदि में आसक्त अन्तःकरण वाले जीवों को बोधि की दुर्लभता प्रतिपादन कर सूत्रकार यह बताते हैं कि वोधि अर्थात् सम्यक्त्व सुलभ किसे होता है ?
जो प्राणी सम्यग्दर्शन में रक्त हैं- जिनवर के वचन में प्रगाढ़ श्रद्धान रखते हैं, जिनोक्ल मार्ग में अविचल रहते हैं, तथा जो निदान शल्य से रहित हैं और जो शुक्ल लेश्या से शोभित हैं, उन्हें बोधि की उपलब्धि सुलभ होती है ।
तपस्या, व्रत - नियम आदि आध्यात्मिक क्रियाएँ करते समय, कर्त्ता को निष्काम होना चहिए । जो सांसारिक सुख की अभिलाषा रखकर धर्म-क्रिया करता है वह उस अभागे, किसान के समान है जो सिर्फ भूसा पाने के लिए धान्य-चपन करता है । वास्तव में धान्य-लाभ के उद्देश्य से की जाने वाली कृषि के द्वारा कृपक को धान्य के साथ भूसा भी मिल जाता है, इसी प्रकार जो श्रनन्त श्रात्मिक सुख को