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धर्म-निरूपण लिखना, यह सब इस अतिचार में सम्मिलित है, पर असावधानी में होने पर ही यह : अतिचार हैं, उपयोगपूर्वक करने पर अनाचार की कोटि में चले जाते हैं।
' (३) स्थूल अदत्तादान विरमणव्रत-साधु दांत साफ करने के लिए तृण जैसी तुच्छ वस्तु भी विना दी हुई ग्रहण नहीं करते हैं, परन्तु श्रावक इस कोटि के अदत्तादान का त्याग करने में समर्थ नहीं हो सकता। अतएव वह राजा द्वारा दंडनीय
और लोक में निन्दनीय स्थूल चोरी का अवश्य ही त्याग करता है। शास्त्रकारों ने स्थूल चोरी के प्रधानतः पांच प्रकार प्ररूपित किये हैं। यथा
(१) सेंध लगा कर, दीवाल फोड़कर, किवाड़ तोड़कर, तिजोरी तोड़कर, दीवाल फांदकर, डाका डालकर या इसी प्रकार के किसी अन्य उपाय से किसी का . धन चुरा लेना, हर लेना।
(२) बाहर जाते समय कोई भद्र पुरुप किसी पड़ोसी आदि पर विश्वास करके अपनी गांठ, सन्दृक श्रादि उसके यहां रख जाय और वह पड़ोसी उसके परोक्ष में गांठ आदि खोल कर उसमें की मूल्यवान् वस्तु निकाल ले और ज्यों की त्यो गठड़ी वांध कर दे, इसी प्रकार सन्दुक आदि में वन्द कर दे, इस प्रकार का अदत्तादान भी स्थल अदत्तादान है। .
- (३) सबल पुरुष या अनेक साहली पुरुषों द्वारा निर्बल पुरुष को लूट लेना, उसका माल हरण कर लेना भी स्थूल अदत्तादान है।
(१) बहुत-से मनुष्य अपने मकान, दुकान आदि का ताला बन्द करके चाबी किसी विश्वासपात्र दूसरे को सौंप देते हैं । वह विश्वासपात्र व्यक्ति विश्वासघात कर के, ताला खोलकर कोई वस्तु निकाल लें और फिर ताला बन्द कर दे, तो उसका यह कृत्य स्थूल अदत्तादान है।
(५) किसी.की कोई वस्तु मकान के बाहर या रास्ते में गिर पड़ी हो, या कोई कहीं रखकर भूल गया हो, तो 'यह वस्तु उसकी है' ऐसा समझते हुए उसे उठाकर अपनी बना लेना भी स्थूल अदत्तादान है। ..
तात्पर्य यह है कि जिस वस्तु के ग्रहण करने से राज्य द्वारा दंड मिल सकता है और जा.चोरी लोक में गहरे के योग्य समझी जाती है, तथा जिसके बिना दिये ग्रहण करने से उस वस्तु के स्वामी को दुःख होता है उस वस्तु को स्वामी की प्राज्ञा बिना ग्रहण करना स्थूल अदत्तादान में सम्मिलित होता है। श्रावक को ऐसी चोरी से वचना चाहिए। . .. . अदत्तादान विरमण व्रत के पांच अतिचार इस प्रकार हैं
(१) स्तेनप्रयोग (२) स्तेनहतादान (३) विरुद्धराज्यातिक्रम (8) प्रतिरूपक व्यवहार (५) हीनाधिकमानोन्मान । - . (२) स्तेनप्रयोग-चोर की चोरी करने की प्रेरणा करना, चोरी की अनुमोदना करना, चोरी के साधन उन्हें देना या बेचना स्तेनप्रयोग नामक प्रथम अतिचार हैं।