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सातवां अध्याय
। २६६ ] (१) सामायिक व्रत-संसार के समस्त पदार्थों पर राग-द्वेष का अभाव होना, साम्यभाव-तटस्थवृत्ति या मध्यस्थता की भावना जागना, सामायिक व्रत है। यह साभ्यभाव तीन प्रकार से होता है अतएव सामायिक के भी तीन भेद हो जाते हैं(१) सम्यक्त्व सामायिक (२) श्रुतसामायिक और (३) चारित्र सामायिक ।' चारित्र सामायिक देशविरति और सर्वविरति के भेद से दो प्रकार का है । श्रुतसामायिक के तीन भेद हैं-सूत्र, अर्थ और सूत्रार्थ रूप सामायिक । सस्यक्त्व सामायिक भी औपशामिक सस्यक्त्व सामायिक, क्षायिक सस्यक्त्व सामायिक और क्षायोपशामिक सम्यक्त्व सामायिक के भेद से तीन प्रकार का है।
श्रात्मश्रेय के साधन में सामायिक की बहुत महत्ता है । सामायिक का अनुठान करनेवाला श्रावक, सामायिक की अवस्थामें श्रमण के समान बन जाता है। कहा भी है
.. सामाइयस्मि तु कए, समणो इव सावो हवइ जम्हा।
एएण कारगणं, बहुसो सामाइयं कुज्जा ॥ अर्थात् सामायिक करने पर श्रावक, साघु सदृश बन जाता है, इस कारण श्रावक को पुनः पुनः सामायिक करना चाहिए ।
. संसार संबंधी समस्त सावध कार्यों से निवृत्त होकर निर्जीव भूमि पर, पौषध शाला आदि एकान्त स्थान में स्थित होकर वस्त्र-श्राभूषण का त्याग कर के, स्वच्छ दो वस्त्र मात्र धारण करके, भूमि पर आसन बिछाकर, आठ पुड की मुखबस्त्रिका बान्ध कर सामायिक नत धारण करे । कम से कम अड़तालीस मिनट तक इसी अरस्था में रहे । इस अवस्था में राग-द्वेष, का त्याग करे, समताभाव का नाश्रय ले, आत्मध्यान, नमस्कार मंत्र का जाप या प्राध्यामिक ग्रंथ का स्वाध्याय करे। यह व्रत दो करण, तीन योग से अर्थात् 'सावध व्यापार मन, वचन और काय ले न करूंगा, न कराऊंगा' इस प्रकार की प्रतिज्ञा के साथ धारण किया जाता है । सामायिक व्रत का यह वाह्य अनुष्ठान व्यवहार सामायिक है और सास्यभाव का उदय होना. निश्चय सामायिक है । सामायिक का विस्तृत विवेचन और परिपूर्ण विधि-अन्य देखना चाहिए । सामायिक व्रत के पांच अतिचार इस प्रकार है- .
(१) मनोदुष्प्राणिधान-मन की असत्प्रवृत्ति होना। मन अत्यधिक चंचल है। वह शीघ्र ही कुमार्ग की और दौड़ जाता है । उसे अपने वशमें न रक्खा जाय तो सामायिक में अतिचार लगता है। ..
(२) वचन दुष्प्रणिधान-वचन की असत्-प्रवृत्ति को बचन दुष्प्रणिधान अतिचार कहा गया है । लामायिक में हिंसा जनक, पापमय, विना सोचे-विचारे, वचनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। ..
(३) कायदुष्प्रणिधान-काय की असत्प्रवृत्ति होना। जैसे शरीर की चपलता, अनुचित आसन से वैठना, बार-बार शासन बदलना, चंचल नेत्रों से इधर-उधर देखना, आदि।