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पांचवां अध्याय
[ २०६ ] सेयं, ( २ ) सुयं सेयं, ( ३ ) सील सेयं सुयं सेयं । “से कहमेयं भंते ! एवं ? गोयमा ! जे णं ते अन्नउत्थिया एवं श्राइक्खंति जाव ते एवं आलु, मिच्छा ते एवं ग्राहंसु, अहं पुण गोयमा! एवं श्राइक्खामि जाव परूवेमि-एवं खलु मए चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तंजहा-(१) सीलसंपरणे नामं एगे गो सुयसंपरणे (२) सुयसंपने नामं एगे को सीलसंपन्ने ( ३ ) एगे सीलसंपन्ने वि सुयसंपन्ने वि ( ४ ) एगे णो सीलसंपन्ने णो सुयसंपन्ने । तत्थ पंजे से पढमे पुरिसजाए से णं पुरिसे सीलवं असुवयं, उवरए अविनायधम्मे, एस णं गोयमा ! मए पुरिसे देसाराहएपन्नत्ते । तत्थ णं जे से दोच्चे पुरिसाजाए से णं पुरिसे असीलवं सुयवं अणुवरए विनायधम्मे एस णं गोयमा ! मए पुरिसे देसविराहएपन्नत्ते । तत्थ णं. जे से तच्चे पुरिसजाए से णं पुरिसे सीलवं सुयवं उवरए विनायधम्मे, एस णं गोयमा ! मए पुरिसे सव्वाराहए पन्नते। तत्थ णं जे से चउत्थे पुरिसाजाए से णं पुरिसे असीलपं असुयवं अणुवरए अविराणायधम्मे, एस णं गोयमा ! मए पुरिसे सबविराहएपन्नत्ते।" . . . . . . . : .
अर्थात्-गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं-"भगवन् ! अन्य मतावलम्बी ऐसा कहते हैं कि (१) शील ही श्रेय है, (२) कोई कहते हैं कि ज्ञान ही श्रेय है और (३) कोई कहते हैं परस्पर निरपेक्ष शील और ज्ञान ही श्रेय है। भगवन् ! क्या यह सत्य है ?" ..... . ... . . . ... .. .
भगवान् उत्तर देते हैं-" हे गौतम! उनका यह कथन मिथ्या है । हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूं-पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई शील संपन्न होते हैं (.२) कोई ज्ञान संपन्न होते हैं. (३) कोई शील और ज्ञान दोनों से संपन्न होते हैं (४) कोई न शील संपन्न होते हैं और न ज्ञान संपन्न होते हैं । : इनमें पहला. पुरुष शीलवान् है परन्तु श्रुतवान् नहीं है वह पाप से निवृत्त है पर धर्म को नहीं जानता वह देश--(अंशतः) श्राराधक है । दूसरा पुरुष शीलवान् नहीं है, श्रुतवान् है, वह. अनुपरत है.पर धर्म को जानता है वह अंशतः विराधक है। तीसरा पुरुप शील और श्रुत दोनों से संपन्न है, पाप से उपरत है और धर्म को जानता है वह पूर्ण आराधकः . है । चौथा पुरुष न शीलयुक्त है न ज्ञानयुक्त है वह पाप से निवृत्त भी नहीं है और धर्म को जानता भी नहीं है वह पुरुप पूर्ण विराधक है, ऐसा मैंने कहा है।" .
शास्त्र के इस प्रश्नोत्तर से स्पष्ट है कि ज्ञान और चारित्र-दोनों से युक्त पुरुष ही पूर्ण रूप से श्राराधक हो सकता है और पूर्ण श्राराधक हुए विना मुलि लाम नहीं. होता अतएव मुमुनु पुरुपों को ज्ञान और क्रिया-दोनों की पाराधना करनी चाहिए। दोनों की श्राराधना के विना मुक्ति की प्राप्ति होना संभव नहीं है । तथापि अनेक लोग अकेले झान को ही मुक्ति का कारण मानते हुए कहते हैं
जान ही मोक्ष का मार्ग है-उसके लिए क्रिया की प्रायश्यकता नहीं है । यदि क्रिया से मोक्ष मिलता होता तो मिथ्यासानपूर्वक क्रिया करने वाले को भी मोक्ष मिल जाता, क्योंकि मिथ्याशानी भी क्रिया करता है और क्रिया से मुक्ति मिलती है । पर ऐसा नहीं होता, अतः सम्यमान ही मुक्ति का कारण है । कहा भी है