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द्वितीय अध्याय
[ ११५ सांसारिक सुख की तीव्रता को भोगने का स्थान है। सूत्रकार यह सूचित करते हैं कि यह जीव सांसारिक सुख की चरम सीमा को प्रप्त करके भी फिर कभी नरक जैसी तीव दुःखप्रद अवस्था का अनुभव करता है । अतएव सांलारिक सुखों को स्थिर नहीं समझना चाहिए।
यह जीव जब विना इच्छा के कष्ट सहन करता है अथवा सम्यकदर्शन और सम्य ज्ञान के बिना अज्ञानपूर्वक तपस्या आदि करता है तब वह भवनपति, व्यन्तर श्रादि देव-योनियों में उत्पन्न होता है।
कुछ लोगों की यह मान्यता है कि जीव स्वयं सुख-दुःख नहीं भोगना चाहता अतएव उसे सुख-दुःख भोगवाने के लिए ईश्वर की आवश्यकता है। कोई यह कहते हैं कि जीव सुख-दुःख का भोग करने में स्वयं समर्थ ही नहीं है अतएव ईश्वर ही उसे सुख-दुःख का भोग करने के लिए स्वर्ग और नरक में भेज देता है । कहा भी
अज्ञः जन्तुरनीशोऽयमात्मनः सुखदुःखयोः। ।
ईश्वरप्रेरितो गच्छेत् स्वर्ग वा श्वभ्रमेव वा। अर्थात् यह अज्ञानी जीव अपने सुख-दुःख का भोग करने में असमर्थ है इस लिए ईश्वर का भेजा हुआ स्वर्ग या नरक में जाता है।
'कोई-कोई यह शंका करते हैं कि कर्म अचेतन हैं, इसलिए उनमें फल देने की शक्ति नहीं है। ऐसी अवस्था में जीव कर्मों के अनुसार स्वर्ग-नरक में कैसे जा सकता है ?
इन सब मतों का निरसन करने के लिए सूत्रकार ने 'अहाकम्मेह' पद .गाथा में रक्खा है । जो लोग यह कहते हैं कि जीव कर्म का फल स्वयं नहीं भोगना चाहता, सो कथंचित् ठीक हो सकता है। अशुभ कर्म का दुःन रूप फल जीव नहीं भोगना. चाहता। पर फल का भोग करने में जीव इच्छा और अनिच्छा में तो कुछ होता नहीं है। उसकी इच्छा न होने पर भी कम से परतंत्र होने के कारण उसे दुःख भोगना ही पड़ता है। विष खाकर यदि कोई मनुष्य मरना न चाहे तो भी उसे मरना पड़ेगा। इसी प्रकार कर्म कर चुकने के पश्चात् कर्मों के द्वारा उसे फल भोगना ही होगा।
जो लोग जीव को सुख-दुःख भोगने में असमर्थ मानते हैं उन्हें यह विचार करना चाहिए कि जीव वास्तव में असमर्थ है तो ईश्वर उससे फल का भोग करा ही नहीं सकत्तर । ईश्वर फल-भोग करावेगा, फिर भी फल-भोग तो जीव ही करेगा । अगर जीव में फल-भोग की शक्ति ही न स्वीकार की जाय तो कोई भी उससे फल नहीं भोगवा सकता। - जो लोग कर्म को जड़-अचेतन होने के कारण फल देने में असमर्थ बतलाते हैं वे जड़ पदार्थों के सामर्थ्य को जानते ही नहीं है । हम दैनिक व्यवहार में प्रतिक्षरए जड़ पदार्थों की शक्ति का अनुभव करते हैं । भौतिक विज्ञान के प्राचार्यों ने जई पदार्थों