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कर्म निरूपण ... (१४) प्रत्याख्यानावरण. लोम-जैले काजल का रंग कुछ कठिनाई से छूटना हैं उसी प्रकार जो लोभ कुछ परिश्रम से छूटे वह प्रत्याख्यानावरण लोभ है।
(१५) अप्रत्याख्यानावरण लोभ ---गाड़ी के पहियों में लगाये जाने वाले .. कीचड़-आँगन के लमान जो लोभ बड़ी मुश्किल से छूटता है वह अप्रत्याख्यानावरण लोभ कहलाता है।
(१६) अनन्तानुबंधी लोभ-किरमिची का रंग जैसे कपड़ा फट जाने पर भी नहीं छूटता उसी प्रकार जो लोभ जीवन के अन्त तक भी न छूटे वह अन्तानुबंधी लोभ है।
नो-ईषत् अर्थात् हल्का कपाय नोकषाय कहलाता है। वह नोकपाय कपाय का साथी है और कषायों को उत्तेजित करता है-भड़काता है अतएव इसकी नोकपाय संज्ञा है। नोकपाय के नौ भेद होते हैं-(१) हास्य (२) रति (३) अरति (४) शोक (५) भय (६) जुगुप्ता (७) स्त्री वेद (5) पुरुप वेद (६) नपुंसक वेद ।।
जिसके उदय से निष्कारण या सकारण हँसी आ उसे दास्य नोकपाय कर्म कहते हैं । जिसके उदय से धन, पुत्र, देश, राज्य आदि में अनुराग हो उसे रति नो . कपाय कर्म कहा गया है । जिसके उदय से पूर्वोक्त पदार्थों में अप्रीति हो उसे अरति लोकपाय कर्म कहते हैं । जिसके उदय से इष्ट के वियोग होने पर क्लेश हो वह शोक नो कपाव कर्म है । जिसके उदय से चित्त में उद्वेग हो वह भय नो कपाय कर्म है। जिसके उदय से ग्लानि उत्पन्न होती है वह जुगुप्ता नो कपाय कर्म कहलाता है। जिलके उदय से पुरुष के साथ रमण करने की इच्छा हो वह स्त्रीवेद, जिसके उदय से स्त्री के साथ रमण करने की इच्छा हो वह पुरुषवेद और जिसका उदय होने पर दोनों के साथ रमण करने की अभिलापा हो वह नपुंसक वेद कर्म कहलाता है।
___ इस प्रकार तीन भेद दर्शन मोहनीय के और पच्चीस भेद चारित्र मोहनीय के (सोलह भेद कपाय चारित्रमोहके और नौ नोकपाय चारित्र मोहके) मिलकर कुल अट्ठाईस भेद मोहनीय कर्म के होते हैं। मूलः-सोलसविहभेएणं कम्मं तु कसायज ।
सत्तविहं नवविहं वा, कम्मं च नोकसायजं ॥ ११ ॥ - छाया:-पोडशविधभेदेन, कर्म नु कपायजम् ।
___सप्तविधं नवविध वा, कर्म च नोकपायजम् ॥11॥ शब्दार्थ:-कपाय रूप चरित्रमोहनीय कर्म सोलह प्रकार का है और नोकपाय रूप चारित्रमोहनीय कर्म सात प्रकार या नौ प्रकार का है ।
__ भाप्यः- दोनों प्रकार के मोहनीय के भेदों का विवेचन सुगमता के उद्देश्य से ऊपर किया जा चुका है। अब उनके विवेचन की आवश्यकता नहीं है। विशेष इतना समझना चाहिए कि नोकपाय चारित्र मोहनीय के नौ भेदों के बजाय सात भेद भी है।