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है । कहा भी है
गुणः पर्याय एवात्र, सहभावी विभावितः । इति तद्गोचरो नान्यस्तृतीयोऽस्ति गुणार्थिकः ॥
पद् द्रव्यं निरूपण
अर्थात् -- सहभाषी पर्याय ही गुण कहलाता है अतएव गुण को विषय करने वाला गुणार्थिक नय तीसरा नहीं है ।
द्रव्यार्थिक नय के तीन भेद हैं-- (१) नैगम (२) संग्रह और (३) व्यवहार 1.
( १ ) नैगम नय - दो धर्मों में से किसी एक धर्म को, दो धर्मियों में से एक धर्मी को तथा धर्म-धर्मी में से किसी एक की मुख्य रूप से विवक्षा करना और दूसरे की गौण रूप से विवक्षा करना नैगम नय कहलाता है । नैगम नय की प्रवृत्ति अनेक प्रकार से होती है | वद्र संकल्प मात्र का भी ग्राहक होता है । जैसे कोई पुरुष ईंधनपानी आदि इकट्ठा कर रहा है, उससे कोई पूछता है कि आप क्या कर रहे हैं ? . वह उत्तर देता है- 'चांवल पकाता हूँ।' यह नैगम नय का विषय है । इसी प्रकार देशदेश में प्रचलित शब्दों के सामान्य और विशेष अंशों को प्रकाशित करने के लिए एक देश और सर्व देश को ग्रहण करना नैगम का विषय है ।
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( २ ) संग्रह नय - सिर्फ सामान्य को विषय करने वाला अभिप्राय संग्रह नय कहलाता है। इसके दो भेद हैं- ( १ ) पर संग्रह और ( २ ) अपर संग्रह | समस्त विषयों में जो उपेक्षा रखकर सत्ता मात्र शुद्ध तत्त्व को विषय करने वाला पर संग्रह कहलाता है और द्रव्यत्व, गोत्व, मनुष्यत्व, जीवत्व, आदि अवान्तर सामान्यों को विषय करने वाला अपर सामान्य कहलाता है । जैसे सत्ता ही परम तत्त्व है और द्रव्यत्व ही तत्त्व हैं।
( ३ ) व्यवहार नय - संग्रहनय के द्वारा विषय किये हुए सामान्य में विधिपूर्वक भेद करने वाला व्यवहार नय कहलाता है । जैसे जो सत् होता है वह द्रव्य और पर्याय के भेद से दो प्रकार का है ।
पर्यायार्थिक नय चार प्रकार का है - (१) ऋजुसूत्र (२) शब्द (३) समभिरूढ और (४) एवंभूत |
( १ ) ऋजुसूत्र - वर्त्तमान क्षणवर्त्ती पर्याय को मुख्य रूप से प्रतिपादन करने वाला नय ऋजुसूत्र नय कहलाता है। जैसे-इस समय सुख पर्याय है। यहां सुख के आधारभूत श्रात्मा द्रव्य को गौरा करके उसकी विवक्षा नहीं करता, सिर्फ सुख पाय को यह विषय करता है ।
( २ ) शब्दनय -काल, कारक, लिंग, वचन यादि का मेद होने के कारण जो शब्द के वाच्य पदार्थ में भी भेद मान लेता है, उसे शब्द नय कहते हैं । जैसे - सुमेरु था, सुमेरु है, सुमेरु होगा। यहां शब्दों में काल का भेद होने से यह नय सुमेरु को भी तीन भेद रूप स्वीकार करता है ।
( ३ ) समभिरूढ नय-काल, कारक आदि का भेद न होने पर भी सिर्फ पर्या