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षद् द्रव्य निरूपण ठीक नहीं है। प्रकृति स्वयं जड़ अर्थात् अचेतन है तो फिर उससे चेतन स्वरूप वुद्धि किल प्रकार उत्पन्न हो सकती है ? उपादान कारण के ही धर्म कार्य में आते हैं । जैसे . काली मिट्टी से काला घट बनता है. सफेद तंतुओं से सफेद वस्त्र बनता है । यदि प्रकृति उपादान कारण है और वुद्धि उसका कार्य है तो प्रकृति का जड़ता रूप गुण । बुद्ध में श्राना चाहिए; परन्तु वुद्धि जड़ नहीं है अंतएव वह प्रकृति का कार्य नहीं है।
सूत्रकार ने इन बातों को सूचित करने के लिए 'नाणेण दसणण य सुहेण य. ' दुहेण य' यह पद सूत्र में रक्खा है। सूल:--सधयार उज्जोत्रो, पहा छायाऽऽतवे इ वा ।
वगण रस गंध फासा, पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥१७॥ छायाः-शब्दान्धकारोद्योताः, प्रभा छायाऽऽaप इति वा।।
___ वर्ण रसगन्धस्पर्शाः, पुद्गलानां तु लक्षणम् ॥ १७ ॥ शब्दार्थ-शब्द, अंधकार, उद्यात, प्रभा, छाया, धूप, वर्ण, रस, गंध' और. . स्पर्श यह सब पद्गल के लक्षण हैं ।
भाग्य-सव द्रव्यों का स्वरूप निरूपण करके अन्त में बचे हुए पुद्गल द्रव्य का स्वरूप प्रतिपादन करने के लिए यह गाथा कही गई है। .
पर्याय-प्ररूपणा के द्वारा यहां पुद्गल का लक्षण बतलाया गया है। शब्द आदि पद्ल द्रव्य की पर्याय हैं अर्थात् शब्द, अंधकार आदि के रूप में पद्दल द्रव्य ही परिग्णत होता है।
__ शब्द दो प्रकार है-भाषा रूप शब्द और भाषा रूप शब्द । भाषा-शब्द के भी दो भेद है-अक्षरात्मक तथा अनक्षगत्मक । पारस्परिक व्यवहार का कारण, शास्त्रों को प्रकाशित करने वाला शब्द अक्षरात्मक शब्द है। हीन्द्रिय श्रादि जीवों का शब्दं अनक्षरात्मक शब्द है।
अभापात्मक शब्द भी दो प्रकार का है-प्रायोगिक और वैनसिक । बिना पुरुष-प्रयत्न के उत्पन्न होने वाला मेघ श्रादि का शब्द वैशेसिक (प्राकृतिक ) शब्द करलाता है। प्रायोगिक या प्रयत्न जन्य शब्द के चार भेद हैं-(१) तत (२) वितत : (२) धन और ( ४ ) सौपिरं । भरी श्रादि का शब्द तत कहलाता है । वीणा आदि के शब्द को वितत कहते हैं। घंटा आदि का शब्द घन कहलाता है और शंख आदि का . छिद्रों से उत्पन्न होने वाला शब्द सौपिर है।। ... दृष्टि के प्रतिबंध का कारण और प्रकाश का विरोधी पुदगल का विकार अंधकार कहलाता है । चन्द्रमा, मणि और जुगनू श्रादि से होने वाला शीतल प्रकाश ज्योत कहलाता है। कान्ति (चमक ) को प्रभा कहते हैं। प्रकाश के प्रावरणं स . उत्पन्न होने वाली छाया कहलाती है। सूर्य आदि से उत्पन्न होने वाला उष्ण प्रकाश आतप है।