________________
प्रथम अध्याय
-
-
मिट्टी बन गये । इसी प्रकार कोई कारण किसी में मिल गया, कोई किसी में मिल गया। पर वह सब कण किली न किसी रूप में विद्यमान हैं। उनका कभी सर्वथा नाश नहीं हो सकत॥
इसी प्रकार जीय द्रव्य को लिजिए । जीव द्रव्य इल लमय मनुष्य के श्राकार में हैं। उसकी मृत्यु हुई और वह देव बन गया। यद्यपि उसमें नया श्राकार शगया फिर भी जीव द्रव्य ज्यों का त्या विद्यमान है । उसका ससूल विनाश कदापि नहीं हो सकता।
उपर दिये हुए उदारण से यह स्पष्ट है कि कोई भी पदार्थ कभी नष्ट नहीं होता फिर भी उसकी अवस्थाएँ सदा बदलती रहती हैं।
पदार्थ के कभी नष्ट न होने वाले अंश को जैनागम की परिभाषा में द्रव्य कहते हैं और सदा बदलते रहने वाले अंश को पर्याय कहते हैं।
यहाँ यह प्रश्न किया जा सकता है कि नव्य कभी नष्ट नहीं होता है, यह तो समझ में आगया, पर वास्तव में द्रव्य क्या है ! यह समझाइए ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि अनन्त गुणों के अखंड पिंड को ही द्रव्य कहते हैं। जैसे अनेक जड़ी-बूटियो को मिला कर पीसने से दवाई की एक गोली बनती है । वह गोली उन जड़ी-बूटियों से सर्वथा भिन्न कोई अलग पदार्थ नहीं है, उसी प्रकार गुणों के समुदाय को छोड़कर द्रव्य भी भिन्न पदार्थ नहीं है। अथवा हाथ-पैर-छाती-पेट-पीठ-सिर. श्रादि अवयवों के समूह को शरीर कहते है। इन अवयवों से बिलकुल अलग शरीर नामक कोई वस्तु नहीं है, उसी प्रकार गुणों से बिलकुल भिन्न द्रव्य नासक कोई वस्तु नहीं है।
यह ध्यान रखना चाहिए कि हाथ पैर आदि से शरीर सर्वथा भिन्न न होने यर भी और जड़ी-बूटियों से बिलकुल अलग गोली न होने पर भी अकेले हाथ को शरीर नहीं कहा जा सकता, अकेले पैर को शरीर नहीं कहा जा सका और सिर्फ एक जड़ी या बूटी को गोली नहीं कहा जा सकता। इसी प्रकार द्रव्य यद्यपि गुणों का समुदाय है-गुणों से सर्वथा भिन्न नहीं है फिर भी किसी एक गुण को ही द्रव्य नहीं कहा जा सकता।
दुसरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि द्रव्य अवयवी है, गुण उसका अवयव है, द्रव्य अंशी है और गुण उसका अंश है।
हाँ, शरीर और द्रव्य में एक अन्तर है। शरीर से उसका कोई अंश पृथक् किया जा सकता है, किसी मंत्र के द्वारा गोली में से एक जड़ी अलहदा की जा सकती है परन्तु गुण द्रव्य ले कभी अलग नहीं किया जा सकता। अनेक तंतुनों का समूह वस्त्र कहलाता है। यदि सब तंतु अलग-अलग कर दिये जाएँ तो वलका ही अस्तित्व मिट जायगा। पर द्रव्य में ले यदि एक भी गुण अलग हो जाय, जो कि कसी संभव नहीं है, तो द्रव्य का अस्तित्व ही न रहे। यही नहीं, उस अलग किये हुए गुण की भी सत्ता नहीं रहेगी, क्योंकि सूभकार ने कहा है कि गुण द्रब्धाश्रित ही होता है। तब फिर जो द्रव्य में श्राश्रित न होगा यह गुण ले कहलाएगा?