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षट् द्रव्य निरूपण अन्यत्व (६) अशुचित्व (७) श्रास्रव (८) संवर (8) निर्जरा (१०) लोक (११) बोधिदुर्लभ और (१२) धर्मस्वाख्यातत्व । इन भावनाओं का पुनः-पुनः चिन्तन करने से सांसारिक भोगोपभोगों से तथा परिग्राह आदि से ममता हटती है और वैराग्य की वृद्धि होती है।
(१) अनित्य भावना-संसार का स्वरूप अस्थिर है, यहां नित्य कुछ भी नहीं । है, इस प्रकार पुनः-पुनः चिन्तन करना।
(२) अशरण भावना-इन्द्र और उपेन्द्र जैसे शक्तिशाली भी मृत्यु के पंजे में . फँसते हैं तो संसार में कोई शरणभूत नहीं है, इस प्रकार वारम्बार विचार करना। .
(३) संसार भावना-इस संसार में संसारी जीव नट के समान चेष्टाएँ कर रहा है-ब्राह्मण चांडाल बन जाता है, चांडाल ब्राह्मण हो जाता है, वैश्य शूद्र बन जाता है और शुद्र वैश्य बन जाता है । यहां तक कि मनुष्य मर कर कीड़े-मकोड़े . बन जाते हैं। संसारी जीव ने कौन सी योनि नहीं पाई है ? अनादिकाल से जीव विविध योनियों में भ्रमण कर रहा है, ऐसा विचार करना।
(e) एकत्व भावना-यह जीव अकेला ही जन्मता है, अकेला ही मरता है, . अकेला ही अपने किये हुए कमों का फल भोगता है, दुःख में कोई भाग लेने वाला नहीं है, इस प्रकार विचार करना।
(५) अन्यत्व भावना-जब शरीर ही जीव से भिन्न है तो धन-धान्य, बन्धुचान्धवों की बात ही क्या है ? इस प्रकार जगत् के समस्त पदार्थों को प्रात्मा से भिन्न चिन्तन करना।
(६) अशुचित्व भावना-संसार में जितने घृणाजनक अशुचि पदार्थ हैं उन सब में शरीर सिरमौर है। यह शरीर मल, मूत्र, रक्त, मांस पीव आदि का थैला है ! यह कदापि शुचि नहीं हो सकता। जिसले नौ द्वार लदैव गंदगी बहाया करते हैं, वह भला कैसे शुद्ध होगा ? इस प्रकार शरीर की अपवित्रता का विचार करना।
(७ प्रास्रव भावना-यात्रव तत्व का पुनः-पुनः विचार करना । (E) संवर भावना-द्रव्य और भाव संबर के स्वरूप का चिन्तन करना । (6) निर्जरा भावना-आगे कहे जाने वाले निर्जरा तत्त्व का चिन्तन करना। (१०) लोक भावना-चौदह राजू प्रमाण पुरूषाकार लोक के स्वरूप का चिन्तन
करना।
(११) बोधि दुर्लभ भावना-जीव अनन्तकाल से संसार में भ्रमण कर रहा है। इसने अनेकों बार चक्रवर्ती की ऋद्धि प्राप्त की है, मनुष्य जन्म, उत्तम कुल, आर्य देश भी पाया किन्तु सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति होना कठिन है, इस प्रकार चिन्तन करना ।
(१२) धर्मस्वाख्यातत्व-संसार रूपी समुद्र से पार उतरने के लिए धर्म ही एक मान उपाय है और धर्म वही है जिसका वीतराग अन्त भगवान् उपदेश देते हैं, इस प्रकार का चिन्तन करना ।