________________
[ ५० ]
षद् द्रव्य निरूपण
मे जाय, एक ऊर्ध्व दिशा में और एक अधोदिशा में जाय, उसी समय हजार वर्ष की श्रायु वाला एक बालक उत्पन्न हो, उसके बाद उसके माता-पिता की मृत्यु हो जाय, इतना समय हो जाने पर भी वे शीघ्रगामी देव लोक का अन्त नहीं पा सकते | उसके बाद उस चालक की आयु पूर्ण हो जाय तब भी देव निरन्तर चलते रहने पर भी लोक के अन्त तक नहीं पहुंच सकते। उस बालक की अस्थि और मज्जा का नाश होने पर भी नहीं और यहां तक कि उस बालक की सात पीढ़ियों तक का नाश हो जाने पर भी वे देव लोक का छोर नहीं पा सकते। उस बालक का नाम - गोत्र नष्ट हो जाने पर भी लोक का किनारा पाना शब्ध नहीं है । इतने लम्बे समय तक : श्रचिश्रान्त शीघ्रतर गति से चलने वाले देव जितना मार्ग-तय करेंगे उससे असंख्यातवां भाग फिर भी शेष रह जायगा । इससे लोक के विस्तार का खयाल आ सकता है । लोक का विस्तृत विवेचन अन्यत्र देखना चाहिए । यहां उसका दिग्दर्शन मात्र कराया गया है ।
काल द्रव्य-वर्त्तना लक्षण वाला काल द्रव्य कहलाता है । काल द्रव्य पुदूगल आदि की पर्यायों के परिवर्तन में सहायक होता है । काल का दिवस, रात्रि आदि विभाग सूर्य-चन्द्रमा की अढाई द्वीप में ही भ्रमण करते हैं, उससे बाहर के सूर्य चन्द्र स्थिर हैं । अतएव श्रढ़ाई द्वीप और दो समुद्र को समय- - क्षेत्र कहते हैं इसी को मनुष्य लोक भी कहते हैं । मनुष्य लोक के सूर्य-चन्द्र शादि सेरु पर्वत के चारों तरफ भ्रमण करते हैं । दिन, रात, पक्ष, माल आदि का व्यवहार मनुष्य लोक के बाहर नहीं होता
आंख का पलक एक बार गिराने में असंख्यात 'समय' व्यतीत हो जाते हैं । ऐसे काल द्रव्य के सबसे सूक्ष्म अविभाज्य काल के परिमाण को समय कहते हैं । असंख्यात समयों की एक श्रावलिका कहलाती है । ४४८० श्रावलिका का एक श्वासो च्छ्वास होता है और ३७७३ श्वासोच्छवास का एक मुहूर्त होता है । ३० मुहूर्त का एक रात दिन, १५ रात दिन का एक पक्ष, २ पक्ष का एक मास, २ मासों की एक ऋतु, ३ ऋतुओं का एक प्रयन ( उत्तरायण और दक्षिणायण) दो अयनका एक वर्ष और पांच वर्ष का एक युग होता है ।
पुद्गलास्तिकाय - रूप, रस, गंध और स्पर्श वाले द्रव्य को पुद्गल कहते हैं। जगत् में हमें जितने पदार्थ दृष्टिगोचर होते हैं वे सब पुद्गल है । क्योंकि जिसमें रूप आदि होते हैं वही पदार्थ दृष्टि गोचर हो सकता है और रूप आदि सिर्फ पुद्गल में ही होते हैं, अतः पुद्गल ही दृश्य है । पुद्गल के अतिरिक्त अन्य द्रव्य श्ररूपी होते. के कारण अदृश्य हैं !
रूप, रस, गंध और स्पर्श की परस्पर व्याप्ति है। जहां रूप होता है वहां रस, गंध और स्पर्श भी होता है। जहां गंध होता है वहां रूप, रस और स्पर्श भी होता है। जहां स्पर्श होता है वहां रूप आदि सभी होते हैं । श्रतपव जो लोग गंध सिर्फ पृथ्वी में ही मानते हैं, रूप को सिर्फ पृथ्वी, जल और तेज में ही मानते हैं और स्पर्श को पृथ्वी, जल, तेज और वायु में ही मानते हैं, उनका मत मिथ्या है।