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षट् द्रव्य निरूपण .. जैले फलों का पाक उपाय पूर्वक भी होता है और स्वाभाविक भी होता है अर्थात् जैसे कच्चा फल तोड़कर घास आदि में दवा देने से शीघ्र पकता है और वृक्ष की शाखा में लगा हुश्रा धोरे-धीरे पकता है इसी प्रकार कर्मों का परिपाक भी दो प्रकार से होता है। मुनिराज तपस्या के द्वारा कर्मो को शीघ्र पका कर उनकी निर्जरा कर डालते हैं और अन्य प्राणी कर्मों का स्वाभाविक रूप से उदय होने पर उसे भोगते है, तत्पश्चात् कर्मों की निर्जरा होती है।
तात्पर्य यह है कि तपस्या और ध्यान आदि के द्वारा कर्म-निर्जरा होती हैं। : निर्जरा मोक्ष का कारण है, अतएव प्रात्म-शुद्धि के अभिलाषियों को उसका उपायतपस्या आदि-करना चाहिए । तप और ध्यान का विवेचन भाग किया जायगा।
. नौवां तत्त्व मोक्ष हैं। सम्पूर्ण कर्मों का पूर्ण रूप से क्षय होने पर.प्रात्मा के . शुद्ध स्वरूप का प्रकट हो जाना मोक्ष है । मोक्ष, जीव की विशुद्ध अवस्था-विशेष है । इसका विस्तृत निरूपण 'मोक्ष' नामक अध्ययन में होगा। . मूल-धम्मो अहम्मो भागासं कालो पोग्गल जंतवो ।
एस लोगुत्ति परणतो जिणेहि वरदसिहि ॥१३॥ . छाया-धोऽधर्म अाकाशं कालः पुद्गल जन्तवः । .
एपो लोक इति प्रज्ञप्तो जिनवरदर्शिभिः ॥ .. शब्दार्थ-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकास्तिकाय, काल, पुद्गलास्तिकाय . और जीव, यही लोक है, ऐसी सर्वदर्शी जिनेश्वरों ने प्ररूपणा की है। ...
भाष्य-पूर्व गाथा में नव तत्त्वों का विवेचन किया गया है। इससे यह आशंका हो सकती है कि जीच आदि तत्त्व कहां रहते हैं ? इस आशंका का समाधान करने के लिए यहां लोक का निरूपण किया है।
तात्पर्य यह है कि जहां धर्मास्तिकाय श्रादि सव द्रव्यों का सद्भाव है उसे लोक कहते हैं । यद्यपि यहां धर्मास्तिकाय आदि को ही लोक संज्ञा दी है किन्तु वह ।
आधाद्यधेय की अभेद-विवक्षा से समझना चाहिए। अर्थात् धर्मास्तिकाय आदि से. • उपलभित श्राकाश-भाग को लोक कहते हैं।
धर्मास्तिकाय-जो द्रव्य जीवों और पुदगलों की गति में सहायक होता है उसे धर्मास्तिकाय कहते हैं। जैसे जल मछली के गमन में निमित्त होता है अथवा रेल की पटरी रेल के चलने में निमित्त होती है उसी प्रकार धर्मास्तिकाय भी जवि-पुद्गलों के गमन में निमित्त होता है।
अधर्मास्तिकाय-जो द्रव्य जीवों और पुदगलों की स्थिति में निमित्त होता है वह धर्मास्तिकाय कहलाता है । जैसे-छाया थके हुए पथिकों को ठहराने में सहायक होती है।
यह दोनों द्रव्य गति-स्थिति में सहायक मात्र होते हैं । यदि प्रेरक होते तो