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प्रथम अध्याय
[. ३७ } योग ही बंध का कारण शेप रहता है। अतएव इन दोनों गुणस्थानों में प्रभक्ति-प्रदेश बंध होता है पर स्थिति और अनुभाग बंध कपाय के अभाव के कारण नहीं होता है। जैसे दीवाल पर फैंकी हुई वालुका दीवाल पर ठहरे बिना ही झड़ जाती है उसी प्रकार वहाँ कर्म भाते हैं पर स्थिति न होने के कारण आते ही झड़ते जाते है-उनका फल भी अनुभाग बंध न होने के कारण नहीं भोगा जाता। कहा भी है
जोगा पयडिएएस, ठिदि-अणुभागा कसामों होति ।
अर्थात् प्रकृति और प्रदेश बंध योग से तथा स्थिति और अनुभाग बंध कषायम से होते हैं।
इस प्रकार सकषयी जीवों को साम्परायिक बंध और कषाय रहित महात्माओं को ईर्यापथ बंध होता है । बंध के भेदों के संबंध में विशेष स्पष्टीकरण द्वितीय अध्ययन में किया जायगा।
चौथा पुण्य तत्त्व यहाँ प्रतिपादन किया गया है । 'पुनातीति पुरयम्' अर्थात् जो आत्मा को पवित्र करता है वह पुण्य कहलाता है। शुभ क्रियाएँ करने से पुण्य का बंध होता है। पुण्य तत्त्व के नौ भेद आगम में बताये हैं। वे इस प्रकार है
( १ ) अन्न पुण्य-भोजन-दान देने से होने वाला पुण्य । (२) पाण पुण्य-पानी देने से होने वाला पुण्य । (३) लयन पुण्य-निवास के लिए स्थान देने से होने वाला पुण्य । (४) शयन पुण्य-शय्या संथारा श्रादि देने से होने वाला पुण्य । .(५) वस्त्र पुण्य-वस्त्र प्रादि देने से होने वाला पुण्य । (६) मनः पुण्य-मानसिक शुभ व्यापार से होने वाला पुण्य । (७). वचन पुण्य-वाणी के शुभ प्रयोग से होने वाला पुरय । (८) काय पुण्य-शरीर के शुभ व्यापार से होने वाला पुण्य । (6) नमस्कार पुण्य-गुरुजन के प्रति विनम्रता धारण करनेसे होने वाला पुण्य ।
उपरोक्त नौ प्रकार से बंधने वाला यह पुण्य बयालीस प्रकार से भोगा जाता है अर्थात् पुण्य का आचरण करने से बयालीस शुभ कर्म-प्रभुतियों के रुप में उसके फल की प्राप्ति होती है।
पुण्य के संबंध में कुछ लोगों की अत्यन्त भ्रमपूर्ण धारणा है वह एकान्त रूप होने के कारण मिथ्या है । कोई कहते हैं कि पुण्य शुभ कर्म रूप होने के कारण, संसार का हेतु है । पुण्य के उदय से सांसारिक सुख प्राप्त होते हैं । उससे शुभ श्रास्रव होता है और आसव मोक्ष में बाधक है। अतएव पुण्य-क्रियाओं का परित्याग करना ही योग्य हैं । इस भ्रम के कारण उन्होंने अनेकानेक अनर्थकारी प्ररूपणाएँ जनता के सामने रक्खीं । जैसे-उनका कहना है कि माता-पिता की सेवा करना
अधर्म है, गर्भिणी स्त्री के द्वारा अपने गर्भ की रक्षा करना अधर्म है, भूखे को भोजन • देना और प्यास के मारे मरते हुए प्राणी को पानी पिलाना अधर्म है, यदि कोई