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द्वितीयः सर्ग स्तमः शंखेश्वरं पार्श्व मध्यलोके प्रतिष्ठितम् । देहली दीपकन्यायाद् भुवनत्रय दीपकम् ॥१॥
अर्थात्- मध्य लोक में रहने पर भी देहली (डेबढी) दीपक न्याय से तीन जगत को प्रकाशित करने वाले श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान् की हम स्तुति करते हैं। (१)
देहली का अर्थ है चौखट-ड्योढी या द्वार की नीचे लकड़ी। अर्थात देहली के ऊपर दीपक रखने से जैसे कमरे के अन्दर और कमरे के बाहर चौक आदि में शुद्ध प्रकाश करता है वैसे श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान् भी स्वयं मध्यलोक में विराजमान होने पर भी उर्ध्व और अधः आदि पूर्ण लोक में प्रकाश करते हैं अर्थात् अज्ञान रूपी अंधकार दूर करके ज्ञान रूपी प्रकाश को करते हैं।
प्रस्तुयतेऽथ प्रकृतं स्वरूपं लोकगोचरम्। द्रव्यतः क्षेत्रतः कालभावतस्तच्चतुर्विधम् ॥२॥
इस ग्रन्थ का नाम 'लोक प्रकाश' है। तो इस लोक का क्या विषय है उसका स्वरूप कहते हैं - लोक का स्वरूप १- द्रव्यपरत्व, २-क्षेत्र परत्व, ३- काल परत्व और ४- भाव परत्व- इस तरह चार प्रकार का है । (२)
एक पंचास्तिकायात्मा द्रव्यतो लोक इष्यते । योजनानामसंख्येयाः कोटयः क्षेत्रतोऽमितः ॥३॥ कालतोभूच्च भाव्यस्ति भावतोऽनन्तपर्यवः ।. लोकशब्द प्ररूप्यास्ति कायस्थ गुण पर्यवैः ॥४॥
लोक धर्मास्ति काय आदि पंचास्ति कायात्मक है। वह इसका प्रथम विभाग है। यह लोक-असंख्यात कोटि योजन विस्तार वाला इसका क्षेत्रफल, वह इसका दूसरा विभाग है। यह लोक भूतकाल में था, भविष्य काल में रहेगा और अभी वर्तमान काल में विद्यमान है, यह इसका तीसरा विभाग है तथा इस लोक में पांच अस्तिकाय हैं इन अस्ति कार्यों में गुण और पर्याय रहे हैं। इसके कारण लोक अनन्त पर्यायी है, इसका यह चौथ विभाग है । (३-४)
अथवा जीवाजीव स्वरूपाणि नित्या नित्यत्ववन्ति च । द्रव्याणि षट् प्रतीतानि द्रव्यलोकः स उच्यते ॥५॥