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एवं च -- अंगुलासंख्यांश मानमेकाक्षाणां जघन्यतः ।
उत्कर्षतोऽङ्गमधिकं योजनानां सहस्रकम् ॥२७३॥ - इसी तरह, और एकेन्द्रिय के शरीर का मान जघन्य से एक अंगुल के असंख्यातवें अंश जितना है और उत्कृष्ट से एक हजार से कुछ अधिक होता है। (२७३)
देहः सूक्ष्म निगोदानामंगुलासंख्य भागकः । सूक्ष्मानिलाग्न्यम्बु भुवामसंख्येय गुणः क्रमात् ॥२७४॥ वाय्वादीनां बादराणां ततोऽसंख्यगुणः क्रमात् । बादराणां निगोदानामसंख्येय गुणस्ततः ॥२७५॥
इसमें भी सूक्ष्म निगोद का देहमान एक अंगुल के असंख्य अंश के सदृश है और इससे सूक्ष्म वायुकाय, अग्निकाय, अप्काय और पृथ्वीकाय के जीवों का देहमान अनुक्रम से असंख्य- असंख्य गुणा है और इससे भी बादर वायुकाय आदि चार का अनुक्रम से असंख्य से असंख्य गुना है और इससे भी बादर निगोद का देहमान असंख्य गुणा है। (२७४-२७५) - स्व स्व स्थाने तु सर्वेषामंगुलासंख्य भागता । , अंगुलासंख्यभागस्य 'वैचित्र्यादुपपद्यते ॥२७६॥
तथा अपने-अपने स्थान में तो वे सर्व एक अंगुल के असंख्यातवें भाग जितने हैं क्योंकि अंगुल का असंख्यवां भाग विचित्र अर्थात् अनेक प्रकार का है, और इसी प्रकार ही घट सकता है। (२७६)
पर्याप्ता के बादराणां मरुतां यत्तु वैक्रियम् ।। .. जघन्यादुत्कर्षतश्च तदप्येतावदेव हि ॥२७७॥ .. और पर्याप्त बादर वायुकाय का जो वैक्रिय शरीर है वह जघन्य से तथा उत्कष्ट से जितना भी है वह एक अंगुल के असंख्यातवें भाग जितना है। (२७७) विशेषतश्च- निगोद पवनाग्न्यम्बु भुव: पंचाप्यमी द्विधा ।
सूक्ष्माश्च बादरास्तेऽपि पर्याप्तान्यभिदा द्विघा ॥२७८॥ एवं विंशतिरप्येते जघन्योत्कृष्ट भूघना । जाताश्चत्वारिंशदेवमथ प्रत्येक भूरुहः ॥२७६॥