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देवलोक तक जाते हैं क्योंकि ईशान देवलोक में जघन्य स्थिति भी पल्योपम से अधिक होती है। (५७ से ५६)
सर्व संसारि गतिषु नराः संख्येय जीविनः । गच्छन्ति कर्म विगमादेति मुक्ति गतावपि ॥६०॥
संख्यात आयुष्य वाले मनुष्य सर्व संसारी गति में जाते हैं और कर्म रहित . बने मोक्ष में भी जाते हैं। (६०) ___ तत्र च.... तीव्र रोषास्तपोमत्तास्तथा बालतपस्विनः । . . .
द्वैपायनादिवरिपरा यान्त्य सुरेष्वमी ॥६१॥ परन्तु इनमें यदि तीव्र रोष वाला हो और तपस्या के कारण उन्मत्त तथा ' बाल तपस्वी हो वह द्वैपायन ऋषि के समान वैर रखने से असुरों में भी जन्म लेता है। (६२)
जलाग्नि झंपासंपात गलपाश विषाशनैः । तृष् क्षुदाद्यैर्मृतास्ते स्युय॑न्तराः शुभ भावतः ॥६२॥
तथा जल में गिरकर, झंपापात- पहाड़ आदि से गिरकर, अग्नि में पड़कर, गले में फांसी खाकर, विषपान करके अथवा भूख- प्यास के कारण जिसकी मृत्यु हो जाती है और उसका शुभ भाव रहे तो वह व्यन्तर होता है। (६२)
अविराद्ध चारित्राणां जघन्यादाद्यताविषः । उत्कर्षेण च सर्वार्थ सिद्धिः स्याद्विषयो गते ॥६३॥
जो चारित्र लेकर विराधना नही करता वह कम से कम देवलोक में जाता है और अधिक से अधिक सर्वार्थसिद्धि में भी जाता है। (६३) .
विराद्ध संयमानां तु भवनेशाद्यताविषौ । क्रमाजघन्योत्कर्षाभ्यामेवमग्रेऽपि भाव्यताम् ॥६४॥
परन्तु जो चारित्र लेकर विराधना करता है वह जघन्यतः भवनपति में और . उत्कर्षतः प्रथम देवलोक में जाता है। (६४)
आराद्ध देशविरतिः सौधर्माच्युत ताविषौ । , विराद्ध देशविरते: भवन ज्योतिरालयौ ॥६५॥
जो देश विरति धर्म का आराधक होता है वह जघन्यतः सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होता है और उत्कृष्टतः अच्युत देवलोक में जाता है और जो देश विरति