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इति दशमः सर्गः
जिसकी कीर्ति सुनकर अखिल विश्व आश्चर्य चकित हो गया है उन श्री- मद् कीर्ति विजय उपाध्याय के शिष्य और माता राजश्री तथा पिता तेजपाल के सुपुत्र श्री विनय विजय जी ने तीन जगत् के तत्व को दीपक के समान प्रकाशित करने वाले जिस काव्य ग्रन्थ की रचना की है उसका यह सुधारस से पूर्ण दसवां सर्ग विघ्नरहित पूर्ण हुआ है । (३०३)
॥ दसवां सर्ग समाप्त ॥