Book Title: Lokprakash Part 01
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 624
________________ (५८७) इस तरह संस्थान परिणाम का स्वरूप समझना । (३) भेदाख्यः पुद्गल परीणामो भवति पंचधा । खंड प्रतर भेदौ द्वौ चूर्णिकाभेद इत्यपि ॥१०७॥ भेदोऽनुतटिकाभिख्यो भेद उत्करिकाभिधः ।। स्वरूपमप्यथै तेषां यथाश्रुतमथोच्यते ॥१०८॥ अब चौथे पुद्गल के भेद में परिणाम भेद कहते हैं । वह पांच प्रकार के हैं१.खंडभेदं, २. प्रतरभेद, ३. चूर्णिका भेद, ४. अनुतटिका भेद और ५. उत्करिका भेद । उसका स्वरूप सिद्धान्त शास्त्र में इस प्रकार कहा है। (१०७-१०८) लोहखंडादिवत्खंडभेदो भवति निश्चितम् । भूर्जपत्राभ्रपटलादिवत् प्रतर संज्ञितः ॥१०॥ स भवेच्चूर्णिका भेदः क्षिप्त मृत्पिण्डवत्किल । इक्षुत्वगादि वदनुतटिका भेद इष्यते ॥११०॥ उत्कीर्यमाणे प्रस्थादौ स स्यादुत्कारिकाभिधः । तटाकावट वाप्यादिष्वप्येवं भाव्यतामयम् ॥१११॥ खंडभेद लोहे के टुकड़े के समान होता है । प्रतर भेद भोजपत्र और अबरख के पत्र समान होता है । चूर्णिका भेद मृत्तिका का पिंड फैंका हो, इस तरह होता है। अनुतटिका भेद इक्षु त्वचा-छाल आदि के समान होता है और उत्कटिका भेद पपड़ी उखाड़ने के समान होता है । (१०६ से १११) द्रव्याणि भिद्यमानानि स्तोकान्युत्करिकाभिदा । . पश्चानुपूर्व्या शेषाणि स्युरनन्त गुणानि च ॥११२॥ इति भेद परीणामः ॥४॥ .... उत्कटिका भेद वाले बहुत थोड़े द्रव्य होते हैं । इसके बाद के शेष भेद वाले द्रव्य इससे अनुक्रम से अनन्त अनन्त गुणा होते हैं । (११२) यह भेद परिणाम का स्वरूप है । (४) वर्णैः परिणतानां तु भेदाः पंच प्ररूपिताः । कृष्ण नीलारुणपीतशुक्ला इति विभेदतः ॥११३॥ स्यु कज्जलादिवत्कृष्णा नीला नील्यादिवन्मताः । स्युहिङ्गलादिवद्रक्ताः पीताश्च कांचनादिवत् ॥११४॥ .. इति वर्ण परीणाम् ॥५॥

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